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सफेद बाल हमें अपने बुढ़ापे और मृत्यु के इशारे हैं। मृत्यु आये, उससे पहले निर्वाण हो जाये, तो इससे बड़ा सौभाग्य क्या !
यदि हम गति और स्थिति को सदा अपना सकें, तो और अच्छा ! उम्र का कोई भरोसा नहीं है । चालीस की इंतजारी कौन करे? हर रोज गति होनी चाहिये और हर रोज स्थिति भी। गति हो सम्यक् आजीविका के लिए, स्थिति हो आत्म-शांति
और आत्म-प्रमुदितता के लिए। हमें अपनी आत्म-शांति के लिए इतना पुख्ताबन्दोबस्त कर लेना चाहिये कि हमारे मरने के बाद हमारी आत्म-शांति के लिए किसी और को पूजा-पाठ करवाने की जरूरत न रहे।
आत्म-शुद्धि के तीन चरण हैं : दर्शन-शुद्धि, विचार-शुद्धि और आचार-शुद्धि । दर्शन, विचार और आचारजीवन के ये तीन आधार-स्तम्भ हैं। इनकी शुद्धि जीवन की शुद्धि है। दर्शन-शुद्धि
दृष्टि ही वह आधारशिला है, जिस पर जीवन-मूल्यों के ज्योति-कलश टिकते हैं। आंखें दो होती हैं, पर दोनों की रोशनी तो एक ही होती है। हमारे पास अपनी कोई दृष्टि नहीं है। हम उधार दृष्टियों से काम चला रहे हैं। हमारी दृष्टि में मिलावटें हो चुकी हैं। बगैर दृष्टि की पवित्रता के न विचार सात्विक रह सकते हैं और न ही तन-मन और आचरण को निर्मल रखा जा सकता है। अन्तर-दृष्टिपूर्वक जीना ही जीवन का सत्य सहज स्वरूप है। दर्शन-शुद्धि के लिए संकल्प लें -
१. मैं देह नहीं , आत्मा हूँ। देह में रहकर भी देह से भिन्न हूँ।
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