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पर उसका अस्तित्व तो है ही। दिखाई देने से ही किसी तत्त्व की सिद्धि नहीं होती। परमात्मा अनुभव-दशा है, अन्तरदशा है, पुलक दशा है। वह आंखों-के-भीतर-की-आंखों से ही अनुभूत और उपलब्ध किया जाता है। परमात्मा मनुष्यात्मा की परम पवित्र और सम्पूर्ण मुक्त दशा का पर्याय है।
हम अपनी आत्मा में परमात्मा की दिव्यता का आह्वान करें। हम अपने मन को मारें नहीं बल्कि पवित्र प्रेम और भक्ति से शृंगारित करें। अपने सोच-विचार-बरताव में सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के मूल्यों को साकार करें। आत्मा की धन्यता ही व्यक्ति को धन्य बनाएगी। वही परमात्म-स्वरूप का सान्निध्य प्रदान करेगी।
सबसे प्रेम करो, सबकी सेवा करो, सबसे मिलो-जुलो, सबमें प्रभु के दर्शन करो।
यही सूत्र काफी है-अस्तित्व के साथ जीने के लिए, परमात्मा के साथ पुलकने के लिए।
Jain परमात्मा/५०
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