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________________ परमात्मा परमात्मा अस्तित्व की सर्वोपरि सत्ता है। अस्तित्व और परमात्मा के बीच एक पुलक भरा सम्बन्ध है। परमात्मा किसी दर्शन-शास्त्र की अवधारणा नहीं, वरन् उसकी आभा और उसका वीतराग रास तो चारों ओर है, सर्वत्र है। परमात्मा मेरे भीतर भी है और तुम्हारे भीतर भी। प्रेम और प्रणाम का भाव अपने प्रति भी हो और औरों के प्रति भी। औरों को प्रेम दें और अपने आपको कष्ट, यह कौन-सी भक्ति हुई? अस्तित्व में ऐसा कोई अंश नहीं है, जिसमें परमात्मा की संभावना से इंकार किया जा सके। हम उसे केवल अपनी ही आंखों में झांक सकते हों, ऐसा नहीं है। यदि अन्तर-दृष्टि में उसकी पुलक पैदा हो जाये, तो हर ठौर वही झलकता हुआ Jain Education International For Personal & Private us अन्तर-गुहा में प्रवेश/४३ay.org
SR No.003968
Book TitleAntargruha me Pravesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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