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आत्म-विस्मृति
विश्व एक रंग-बिरंगा उपवन है। मनुष्य इस उपवन में खिले फूलों में सर्वाधिक सुन्दर है। हमारा रंग-रूप और नाक-नक्श सौन्दर्य के ही प्रतिमान हैं। परन्तु विचारों और भावों की सुन्दरता के बगैर मनुष्य का जीवन-सौन्दर्य अधूरा है। जीवन न तो केवल काया पर ही अवलंबित है और न ही हर क्षण काया के रूप-रस में जिया जा सकता है। अन्तरात्मा की सुषमा ही मनुष्य को आत्मीयता, महानता और सम्मान दिलाती है।
सभी जानते हैं कि शरीर अन्ततः नाशवान् है पर शरीर के साथ काफी सम्भावनाएं जुड़ी हुई हैं। शरीर साधन है और हमें इसे साधन जितना महत्व देना ही चाहिये। आत्मा
और परमात्मा से प्रेम करने वाला भी अपने शरीर को त्यागना नहीं चाहता। इसकी शुद्धि और स्वच्छता आवश्यक है, पर
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