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________________ पर दृष्टि बदल जाये, तो सन्दर्भ के सत्य तो साफ हो ही जाते हैं। ___ 'मैं कौन हूँ' इस प्रश्न से अन्तर-प्रवेश की भूमिका तैयार होती है। मैं कौन हूँ- आत्म-परिचय के लिए यह सर्वसिद्ध मन्त्र है। अभी हम अपने-आप से पूछेगे कि मैं कौन हूँ, तो जवाब आयेगा मैं यह हूँ या मैं वह हूँ। पर नहीं, ये जवाब मन की चालें हैं। मैं स्त्री हूँ या पुरुष हूँ, शिक्षित हूँ या अशिक्षित हूँ, अमीर हूँ या गरीब हूँ-ये उत्तर मन के हैं। हम इसे ध्यान-प्रक्रिया के अन्तर्गत लें, और अपनेआपसे प्रश्न करते रहें। जब तक जवाब आते हैं, तब तक प्रश्न रहें। जब जवाब आने बन्द हो जायें, मन जवाब देते-देते थक जाए, तो इसे अपने लिए अमृत वेला मानें। उस शान्त स्थिति में जवाब की बजाय बोध होगा। जिसका बोध हो, वही हैं हम। उसे हम नाम चाहे जो देना चाहें, हमारी मौज। उसे हम जीवन कहें, महाजीवनः आत्मा, परमात्मा या शून्य। शब्द गौण है, बोध महत्त्वपूर्ण है। वह जो भी है, हमारा आत्म-परिचय है, हमारा अस्तित्व है। अपने में प्रवेश करके ही हम अपने उन कर्म-संस्कारों को, कलुषित विकारों को बोधपूर्वक काट सकते हैं, जिनका हमने न जाने कब से संचय-संग्रह किया है। अन्तस का स्पर्श किये बगैर तो मनुष्य का मनोमन अन्तरद्वन्द्व सदा जारी रहेगा-विकार और शरीर-सुख के बीच; जीवन और जगत् के बीच । वह कथनी-करनी के भेद को सदा दोहराएगा। भीतर पाप जारी रहेगा, बाहर पुण्य प्रदर्शित होता रहेगा। Jain Education International For Personal & Private Useअन्तर-गुहा में प्रवेश/9ary.org
SR No.003968
Book TitleAntargruha me Pravesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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