________________
नींद खोलें भावों की
८६
जोड़ना है। बाहर से बहुत बदल चुके हो, अब बारी है भीतर से बदलने की।
मैं जब छोटा बच्चा था तो एक बगीचे में जाया करता था। वहाँ के पेड़ों पर गिरगिट बहुत होते थे। मैं गिरगिट को देखता और रंग-परिवर्तन के लिए उसे कंकर मारता। कंकर लगने पर गिरगिट घबराकर अपना रंग बदल लेता। इस प्रक्रिया में मुझे बहुत आनन्द आता। गिरगिट कोई खतरा देखकर अपना रंग बदल लिया करता है, मगर वह रहता तो गिरगिट ही है। रंग बदलने से वह नहीं बदल सकता। सर्प चाहे दुशाला प्रोढ़ ले या दिगम्बर हो जाए, जब तक उसमें जहर है, वह खतरनाक है और जहर निकाल देने पर वह सर्प ही नहीं रह पाता। जहर समाप्त होने पर वह काटना तो नहीं छोड़ेगा, मगर उसका काटना बाद में नुकसानदेह नहीं होगा। भीतर से बदलाव ही सच्चा बदलाव है।
___ साधना की शुरुआत हमेशा भीतर से होती है। आत्मविशुद्धि की शुरुआत भी भीतर से ही होती है। जहाँ भीतर से बेहोशी चली गई, वहाँ चारित्र अपने आप सध जाएगा। महावीर नग्न रहते थे। उनकी नग्नता कहाँ से आई थी ? भीतर के भावों से, सम्यक् दर्शन से वह नग्नता आई थी। हमने नग्नता को भी एक बाना बना लिया। कहते हैं कि जब तक नग्न नहीं होंगे, तप नहीं हो पाएगा। कुछ लोग कहते हैं कि स्त्री की मुक्ति नहीं हो सकती, क्योंकि वह नग्न नहीं हो
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org