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________________ भगवत्ता फैली सब ओर मांगी तो ऐसा श्राप दूंगा कि जल कर भष्म हो जाओगे।' वह आदमी कहने लगा-'पाप तो कह रहे थे कि मेरे पास आग है ही नहीं, फिर ये चिनगारियाँ कहाँ से आ रही हैं।' साधु बोला, कौन-सी चिनगारी? जवाब मिला, क्रोध की चिनगारी, जो भीतर से उभर रही है। इसलिए जब तक भीतर सम्यक् दर्शन पैदा न होगा तब तक ऊपर का आरोपण भारभूत है। भीतर सम्यक् शुद्धि नहीं है, सम्यक् दृष्टि नहीं है, तब तक पाला गया चारित्र बाहर से तो चारित्र बन जाएगा मगर भीतर चिनगारियाँ शेष रहेंगी। कुन्दकुन्द कहते हैं तूने बाहर से चारित्र भले ही न पाला हो, लेकिन भीतर की चिनगारी शांत कर ली तो वहाँ भीतर का चारित्र अपने आप सध जाएगा। सारी दुनिया साधु नहीं बन सकती। जंगल में जाकर आराधना नहीं कर सकती। मगर गृहस्थ में रहकर साधु जीवन तो जिया ही जा सकता है। आप अपने घर में साधु हो जाएंगे। इतना जरूर होगा कि कोई चरणों की वन्दना करने नहीं आएगा। नाम के आगे 'मुनि' शब्द भी नहीं लगेगा, मगर इससे आपका साधुत्व कम नहीं होगा। आपको 'साधु' बनना है या नाम की भूख है ? भीतर से साधुत्व जगाना है। अध्यात्म अपनी ही आत्मा की विशुद्धि का नाम है, महती अनुष्ठान है। वह दूसरों के लिए नहीं है, वह केवल अपने लिए है। उसे अपने साथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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