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________________ भगवत्ता फैली सब ओर तभी सच्चे अर्थों में अपनी महनीयता को शिलालेखित कर पाता है, जब बाहर का त्याग भीतर से अभिव्यक्त हो। कुन्दकुन्द स्वयं विरक्त अध्यात्म सन्त थे। संन्यास के बाहरी तौर-तरीकों के हिसाब से उन्होंने जो कुछ भी त्यागा, वह फकीरी का शिखर रूप था। कुन्दकुन्द बनवासी रहे । गुफाओं में ही साधना की और बाने के नाम पर नग्नता थी। जैसे महावीर नग्न रहे वैसे कुन्दकुन्द भी नग्न रहे। भोजन के नाम पर एक दिन में एक समय भोजन किया। पर इतना कुछ होते हुए भी कुन्दकुन्द ने यह कहने का साहस दिखाया कि द्रव्यलिंग/वेश-विधान को परमार्थ मत जानो। कुन्दकुन्द ईमानदार रहे। ईमानदार ही ऐसी बात कह सकता है। जितने ईमानदार कुन्दकुन्द मिलेंगे, उतने उनके अनुयाई नहीं। कुन्दकुन्द को मानने वाले तो कहते हैं द्रव्यलिंग पहला चरण है। वे कहते हैं नग्नता तो मुक्ति का पहला सूत्र है। बिना नग्न हुए वे मुक्ति की सम्भावना को स्वीकार नहीं करते। अगर ऐसा है तो उनकी मुक्ति भी वैसी ही संकीर्ण है जैसी संकीर्ण उनकी मान्यता । नग्नता को भी उन्होंने साधु का एक बाना बना लिया है। जबकि नग्नता तो बानों से मुक्त है। मेरा निवेदन तो यह है कि नग्नता अगर स्वाभाविक तौर पर खिल आये तो उसे प्रेम से स्वीकार कर लेना चाहिए। नग्नता के लिए भी जोर-जबरदस्ती ! तुम कहोगे साधु बनना है तो पहले अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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