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________________ भगवत्ता फैली सब ओर जो दर्शन से भ्रष्ट है, वह भ्रष्ट है। दर्शन-भ्रष्ट को निर्वाण नहीं होता। चारित्र भ्रष्ट सिद्ध हो सकते हैं, पर दर्शन-भ्रष्ट नहीं। ___ लगता है कुन्दकुन्द कोई कब्र खोद रहे हैं जिसमें बूरी जा सके व्यक्ति की अन्धी मान्यताएं। उनके शब्द खतरनाक लग रहे हैं, पर ऐसा किए बगैर निस्तार नहीं है। वे पहले मिटाएंगे और फिर बनाएंगे। एक अोर कब्र है और दूसरी अोर गर्भ है। कब्र मिटाने के लिए और गर्भ बनाने के लिए। नव निर्माण करना है तो खण्डहर को गिराना होगा, जर्जर को गिराना होगा। शैशव के द्वार पर दस्तक देना होगा। नए फूल की आशा हो, तो इस प्रक्रिया से गुजरना ही होगा। कुन्दकुन्द के अध्यात्म का मूल-प्राण है दर्शन । दर्शन दृष्टाभाव है, दृष्टा का अन्तविवेक है, साक्षी का देखना है। इस देखने को बड़ी गहराई से लेना। स्वर्ग-नरक के नक्शों को देखना, कोई दर्शन नहीं है। मैंने कई घरों में स्वर्ग-नरक से लेकर मोक्ष तक के नक्शे देखे हैं। देखो तो बड़े प्रभावित हो उठोगे। वहां इंच-इंच का हिसाब लिखा है। मोक्ष कहीं और थोड़े ही है जो उसके नक्शे बना रहे हो। मोक्ष तो भीतर है, अपने ही अन्दर । यह भी क्या खास बात है कि स्वर्ग-नरक के तो नक्शे बनाए गए हैं पर अभी तक तो इस धरती और इस जीवन का भी सही नक्शा नहीं बना है। स्वर्ग-नरक तो मृत्यु के बाद की चीजें हैं। हमें चिन्ता लगी है मौत के बाद की। जीवन तो बगैर मार्ग के बीत रहा है। आदमी दौड़ता है आकाश के तारों को अपने हाथों में लेने के लिए, मगर यह भूल जाता है कि पांव तो जमीन पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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