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________________ १२ भगवत्ता फैली सब ओर अधूरा है तो किसी अधूरे में हाथ मत डाल । तू तो डूबेगा ही, साथ में उसे भी ले डूबेगा, जो तेरे पास पार होने की आस लेकर आया है। यदि तू हकीकत में अभी तक गुरु नहीं बना है, अध्यात्म को अपने जीवन में नहीं उतारा है, तो पहले अपने में सुधार ला। कुन्दकुन्द का शास्त्र अनुभव का शास्त्र है । उनका शासन ज्योतिर्मय दीप का शासन है। इसलिए कुन्दकुन्द का अध्यात्म अन्धेरे में खींची रेखाएँ नहीं हैं, वरन् अन्तर की आँख से निपजा दर्शन है। अध्यात्म में उनकी पहुँच और उनकी भगवत्ता बहुत गहरी है। ऐसे प्राचार्य कभी-कभार ही होते हैं धरती पर। उन्होंने जो कहा है, उसे जिया है। इसलिए मैं भी यह सलाह दूंगा कि उन्हें सुनना ही काफी नहीं है। इसलिए जियो। जब तक जरूरत लगे कुन्दकुन्द का उपयोग करना। वहां कुन्दकुन्द की जरूरत नहीं रहेगी जब तुम स्वयं कुन्दकुन्द बन जाओगे, कुन्दन बन जाओगे। ___ कुन्दकुन्द के लिए दर्शन का महत्त्व है। उनका दर्शन बुद्धिजीवियों की फिलोसोफी नहीं है। उनका दर्शन तो आँख है, हृदय की आँख है । आत्म-दृष्टि ही कुन्दकुन्द का दर्शन है। इसलिए यहाँ हृदय लाभो। हृदय में ही उतारा जा सकता है कुन्दकुन्द के अनुभवों को, अध्यात्म के रस को। मेहरबानी कर उन्हें सुनते वक्त अपनी पण्डिताई बीच में मत लाना। उनके वक्तव्य आत्मा की आवाज है और प्रात्म-भाव से ही उस आवाज को सुना जा सकता है। बुद्धिजीवी या कट्टरपंथी उनकी क्रांति को बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। उनके वक्तव्य आम आदमी के लिए है भी नहीं। कुन्दकुन्द का उपयोग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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