SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४८ ] उपसंहार : निष्कर्षतः हम देखते हैं कि क्षमा बहुआयामी और बहुप्रभावी तत्त्व है। क्रोध को उपशान्त कर क्षमा की साधना से व्यक्ति आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में विकास कर सकता है। वस्तुतः क्षमा आध्यात्मिक एवं सामाजिक दोनों ही क्षेत्रों के लिए आवश्यक है। आध्यात्मिक क्षेत्र में वह विद्वेष एवं तज्जनित आकूलता को समाप्त कर हमें स्व-स्वभाव में स्थित करती है तो सामाजिक जीवन में वह परस्पर सौहार्द्र और सौमनस्य की स्थापना करती है। - आज वैज्ञानिक साधनों के कारण विश्व की दूरियाँ सिमटती जा रही हैं। बाह्य रूप में मनुष्य एक दूसरे के बहत निकट आ गया है। किन्तु दुर्भाग्य यही है कि हमारे हृदय की दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं। वास्तव में क्षमा ही एक ऐसा तत्त्व है जो हृदयों की इन दरियों को समाप्त कर मनुष्य को एक-दूसरे के निकट ला सकता है। पर्युषण के पुनीत अवसर पर क्षमा की साधना का अर्थ यही है कि हमारी पारस्परिक दूरियाँ कम हों और हमारे सामाजिक जीवन में सौहार्द्र एवं सौमनस्य बढ़े । वस्तुतः जब क्षमा के स्वर मुखरित होंगे तभी शान्ति की वीणा बज सकेगी। क्षमा की साधना ही एक ऐसा उपाय है जो अन्तः और बाह्य-दोनों ही जीवन में शान्ति की स्थापना कर सकता है । काश, हम इस दिशा में आगे बढ़े और मानव-समाज को जो आज अन्तः और बाह्य दोनों रूपों में अशान्त है, शान्ति का चिर-सौख्य प्रदान कर सकें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003966
Book TitleKshama ke Swar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJain Shwetambar Shree Sangh Colkatta
Publication Year1984
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy