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________________ [ २२ ] बातें सहने को ही श्रेष्ठ क्षमा कहते हैं। बुद्ध कहते हैं, सर्वप्रथम अपने विरोधी शत्रु पर ही क्षमा करनी चाहिये । अपना अधिकार स्वीकार करने वालों को जो क्षमा नहीं करता है, वह भीतर ही भीतर क्रोध रखने वाला महाद्वेषी, वैर को और अधिक बांध लेता धम्मपद में लिखा है क्षमा परम तप है। सचमुच, क्षमा से बढ़कर अन्य कुछ नहीं है।" बुद्ध ने क्षमा को निर्वाण का कारण कहा है। धम्मपद में उल्लिखित है कि किसी से कटवचन न बोलो। यदि बोलोगे, तो वह तुमसे वैसा ही कट-वचन बोलेगा। प्रतिवाद दुःखदायक होता ही है। उसके बदले में तुम्हें दंड मिलेगा। टूटा हुआ कांशा जैसे निःशब्द रहता है, उसी तरह अगर तुम स्वयं चुप रहोगे तो तुम निर्वाणपद प्राप्त कर लोगे । ___ 'संयुत्त निकाय' में क्षमा के सम्बन्ध में पूर्ण नामक एक बौद्ध भिक्ष की कथा मिलती है। भगवान् बुद्ध ने पूर्ण को उपदेश दिया। तत्पश्चात् बुद्ध ने उससे पूछा-पूर्ण ! मेरे उपदेश को सुनकर तुम किस जनपद में विहार करोगे ? __ भन्ते ! सूनापरान्त नाम का एक जनपद है, वहीं मैं विहार करूँगा। पूर्ण ! सूनापरान्त के लोग बड़े चण्ड हैं। पूर्ण ! यदि वे तुम्हें गाली देंगे और डाटेंगे तो तुम क्या करोगे ? __भन्ते ! यदि सूनापरान्त के लोग मुझे गाली देंगे और डाटेंगे तो मुझे यह होगा- यह सूनापरान्त के लोग बड़े भद्र हैं, जो हाथ से मारपीट नहीं करते हैं । भगवन् ! मुझे ऐसा ही होगा। सुगत ! मुझे ऐसा ही होगा। ___ पूर्ण ! यदि सूनापरान्त के लोग तुम्हें ढेला से मारें, तो तुम्हें क्या होगा ? भन्ते ! यदि सूनापरान्त के लोग मुझे ढेला से मारेंगे तो मुझे यह होगा--यह सूनापरान्त के लोग बड़े भद्र हैं, जो मुझे लाठी से नहीं मारते । १. संयुत्तनिकाय, १.११.४ ३. संयुत्तनिकाय, १.१.३५ ५. विशद्धिम ग, ९.२ २. विशुद्धिमग्ग, ६.८२ ४. धम्मपद, १६.४ ६. धम्मपद, १०. ५.६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003966
Book TitleKshama ke Swar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJain Shwetambar Shree Sangh Colkatta
Publication Year1984
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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