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[ २० ] प्रहार करते । कुछ लोग उनका माँस काट लेते। कभी-कभी शरीर पर धूल डाल देते या थूक देते। कुछ लोग ध्यान में स्थित भगवान् को ऊँचा उठाकर नीचे गिरा देते। उन्हें आसन से स्खलित कर देते थे फिर भी भगवान् क्षमाशील रहते थे। वे देहभाव से परे होकर आत्मस्थ रहते थे। क्षमा के सम्बन्ध में हिन्दूधर्म का दष्टिकोण :
हिन्दुधर्म के अनेक ग्रन्थों में महाभारत प्रमुख है। महाभारत में क्षमा का महत्व स्वीकृत करते हुए इसे ही धर्म, यज्ञ, वेद और शास्त्र कहा गया है। इसे ही ब्रह्म, सत्य, भूत, भविष्य, तप तथा पवित्रता के रूप में निर्दिष्ट किया गया है और यह लिखा है कि क्षमा ने ही सम्पूर्ण जगत् को धारण कर रखा है। महर्षि वेदव्यास का यह कथन भी क्षमा की महानता को प्रस्तुत करता है कि क्षमा तेजस्वियों का तेज है, तपस्वियों का ब्रह्म है, सत्यवादियों का सत्य है, यही यज्ञ है और यही मनोनिग्रह है। क्षमा को ब्रह्म आदि के रूप में स्वीकार करके महाभारतकार ने क्षमा की व्यापकता को सिद्ध किया है।
महाभारत में क्रोध की निन्दा करते हुए क्षमा की प्रशंसा की गई है। उसमें कहा गया है कि यदि मनुष्य पृथ्वी के समान क्षमाशील न हों, तो मनुष्यों के बीच कभी संधि हो ही नहीं सकती। क्योंकि झगड़े का मूल तो क्रोध ही है। इसीलिए महाभारतकार कहते हैं, जिसने पूर्व में तुम्हारा उपकार किया हो, उससे यदि कोई भारी अपराध हो जाए, तो भी पूर्व के उपकार को स्मरण कर उस अपराधी को तुम्हें क्षमा कर देना चाहिये । संक्षेप में, महाभारत में क्षमा को अत्यधिक महत्व दिया गया है। क्षमा के सम्बन्ध में उसका १. आचारांग, १.९. २. क्षमा धर्मः क्षमा यज्ञः, क्षमावेद: क्षमाश्रु तम्---- महाभारत, ३. क्षमा ब्रह्म क्षमा सत्यं, क्षमा भतं च भाविच।
क्षमा तपः क्षमा शौचं, क्षमयेदं धतं जगत् ।। - वही. ४. वही, वनपर्व, २९.४० ५. यदि न स्युर्मानुषेषु क्षमिण: पृथिवीसमाः । __न स्यात् संधिर्मनुष्याणां क्रोधमूलो ही विग्रहः ।।-वही. ६. पूर्वोपकारी यस्ते स्यादपरादे गरीयसी ।
उपकारेण सेत् तस्य क्षन्तव्यमपराधिनः ।।-वही.
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