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________________ हैं, जुबान चल रही है, लेकिन मन केन्द्रित है। जिसका मन शान्त हुआ, वह संत है। 'संत' शब्द का अर्थ है - शान्त । सन्त का अर्थ होता है, जिसके भव का अंत हो चुका है। संत वह है, जो शांत हो चुका है। शांत मन ही मुनि है और अशान्त मन ही संसारी। ____ 'मुनि', महावीर ने अपने शिष्यों को बहुत अच्छा शब्द दिया है यह । जिसके मन ने मौनव्रत ले लिया है, वह मुनि है। जब-जब भी व्यक्ति का मन मौनव्रत ले लेता है, तब-तब उस के भीतर मुनित्व का आयोजन होता है, भीतर में मुनित्व साकार होने लगता है। इसलिए वह व्यक्ति मुनि है, इन कपड़ों में रहकर भी मुनि है, जिसका मन शांत हो गया है, केन्द्रित हो गया है, एकाग्र है, जिसका मन हृदय में विसर्जित हो चुका है। गृहस्थ वह है जो भले ही संन्यास के वेश-परिवेश में रहता हो, लेकिन जिसका मन दिन-रात उमड़ता-घुमड़ता रहता है। मैं एक मन्दिर बनाऊं, एक उपाश्रय बनाऊं, मैं प्रतिष्ठा करूं, शिलान्यास करूं ऐसे संकल्प-विकल्प जिसके अभी भी चल रहे हैं, वह गृहस्थ है। रास्ते बदल गये हैं, खूटे बदल गये हैं, बंधा हुआ तो अब भी है, बंधन तो उसके अब भी हैं। भगवान बुद्ध के जीवन का एक प्रसंग है, मुझे सर्वाधिक प्रिय। भगवान बुद्ध किसी रास्ते से गुजर रहे होते हैं, आगे भयानक जंगल पड़ने वाला था। लोगों ने उन्हें कहा, भन्ते! आप इस मार्ग से मत जाइये। ये मार्ग छोटा जरूर है, लेकिन इस रास्ते पर एक भयंकर रक्त-पिपासु अंगुलीमाल रहता है। वह मनुष्यों की अंगुलियां काटकर उनकी माला बनाता है और उसे अपनी आराध्य देवी को अर्घ्य के रूप में चढ़ाता है। उसने शपथ ले रखी है कि वह एक हजार मनुष्यों की अंगुलियां देवी को चढ़ाएगा। वह नौ सौ निन्यानवे मनुष्यों की अंगुलियां तो चढ़ा चुका है। अब उसे केवल एक और मनुष्य की आवश्यकता है। इसलिए भन्ते! अब आप इस मार्ग से न जाएं। बुद्ध ने कहा - यदि किसी मनुष्य को मेरी जरूरत है तो मुझे जाना ही चाहिए। उसे अब केवल एक आदमी की जरूरत है और मैं चाहता हूँ कि वो अन्तिम आदमी मैं ही बनूं। उसने बहुत क्रूरता कर ली, बहुत हिंसा कर ली। अब या तो मैं मर जाऊंगा या उसके अन्दर का 'हिंसक' मर जाएगा। लोगों ने प्रभु को बहुत समझाया, पर प्रभु न माने। वे उसी मार्ग से गये। जंगल में पहुँचने पर अंगुलीमाल ने बुद्ध को ललकारा। उसने सोचा किसकी मौत आई है, जो इस जंगल में बढ़ा चला आ रहा है। चलो अच्छा हुआ। बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ६२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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