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________________ सत्य को सुन तो लोगे, लेकिन आंखों देखी सो सच्ची सब, कानों सुनी सो झूठी। दृष्टि जीवन की महानतम उपलब्धि है और अंतर्दृष्टि खुलजाने से अधिक उपलब्धि पूर्ण जीवन का कोई और अंजाम नहीं हो सकता। दर्शन हमेशा होश से पैदा होता है, भीतर की जागरूकता से जनमता है। भीतर की अप्रमत्तता से दर्शन आत्मसात होता है। सम्यक दर्शन को प्राप्त करने का एकमात्र तरीका यही है कि तुम कितने होश से, कितनी जागरूकता से, कितने यत्न से, कितनी स्वाभाविकता से जीते हो। हमारा होश, हमारा अप्रमाद, हमारी अप्रमत्तता जितनी तीव्र होगी, जितनी खरतर और प्रखर होगी, उतनी ही ज्यादा हमारी सम्यक्दर्शन की सम्भावना मुखर होती चली जाएगी। सम्यक्दर्शन तो अनुभव का मार्ग है, कहने या सिखावे का नहीं। और जो व्यक्ति अनुभव से गुजरता है वह स्वयं में पूर्ण होता है, किसी बच्चे को कहो कि आग में हाथ मत डालना, हाथ जल जाएगा, तो बच्चा नहीं मानेगा, लेकिन वह एक बार आग के पास चला जाए और उसकी अंगुली जरा-सी भी जल जाए तो उसे आग की जलन का बोध हो जाएगा। वह आग के प्रति हमेशा के लिए सावचेत हो जाएगा। हजार बार दी गई सीख के मुकाबले एक बार का अनुभव ज्यादा सार्थक, ज्यादा कारगर होता है। एक बार बिजली के झटके का अनुभव हो जाए तो बिजली के तार को छूना तो दूर, व्यक्ति उसके प्लग को हाथ लगाने से भी डरता है। क्योंकि करंट का अनुभव है। कहावत है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। वह अनुभव से गुजरा होता है। जिसने एक बार अनुभव से गुजर कर जान लिया कि वासना का क्या दुष्परिणाम होता है, वह वासना से मुक्त हो जाएगा। जिसने एक बार जागरूकता पूर्वक क्रोध को जान लिया, क्रोध के दुष्परिणाम को समझ लिया,उसे फिर क्रोध का हेतु मिलने पर भी क्रोध नहीं आएगा। लेकिन जब तक होश पूर्वक क्रोध से गुजरेंगे नहीं तब तक क्रोध मत करो - ऐसा किसी के कह देने मात्र से क्रोध ठंडा नहीं हो जाएगा। किताबों को पढ़ने से या किसी के कोरे प्रवचनों को सुनने से क्या अभी तक किसी का क्रोध खत्म हुआ है? जन्म से अब तक पढ़ते आ रहे हो कि क्रोध पाप का बाप है, क्रोध दिमाग का धुंआ है, क्रोध शैतान का घर है, फिर भी क्रोध कर रहे हो। सिगरेट के डिब्बे पर रोज पढ़ते हो, सैकड़ों बार पढ़ा होगा कि सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकर है, पर सिगरेट नहीं छूटी । जब खांसी उठेगी, दम घुटेगा, जी जलेगा, तब अनुभव होगा, ओह! सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ५० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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