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________________ और जब प्रकाश को उपलब्ध हो जाओ, जब नौका सागर पार कर जाती है, तो छलांग लगा देना तट पर चढ़ने के लिए। अगर गौतम ने छलांग न लगाई तो वीतरागता और भगवत्ता से, करीब होकर भी दूर रहोगे। इसलिए गुरु का महत्व तो है, निश्चित ही है लेकिन उतना ही महत्व है जितना एक दिशादर्शक का होता है, अंगुली दिखाने वाले का होता है। किसी मिडवाइफ का होता है। इससे आगे की यात्रा तो हमें स्वयं ही करनी पड़ेगी। राजचन्द्र का पद है -- बिना नयन पावे नहीं, बिना नयन की बात । जो सेवे श्री सद्गुरु, सो पावे साक्षात।। वे बातें जो बिना नयन की हैं, जिन्हें साक्षात देखा नहीं जा सकता, उन बातों को देखने के लिए ही सद्गुरु का महत्व है। सद्गुरु वह है जो तुम्हारे चित्त को आंदोलित कर दे, प्रभावित कर दे और परिवर्तित कर डाले । गुरु का उपदेश सुनकर आपके हृदय में तीस-तीस दिन के उपवास का उदय हो या न हो, लेकिन आपके जीवन में, आपके मन के भावों की परिणतियों में एक निर्मलता और सरलता आनी चाहिए। सम्यक्त्व - बिना नयन की बात है, जो हमारे भावों की सरलता में ही सम्भावित है। हमारे मन के परिणाम जितने निर्मल-भद्र-सरल-ऋजु होते चले जायेंगे, हमारे भीतर प्रकाश की सम्भावनाएं उतनी ही बढ़ती जाएंगी। मुझे सुनकर हो सकता है आप अड़तालीस मिनट तक लगातार एक ही आसन पर बैठने में सफल न हों, लेकिन जब-जब भी आपके मन में क्रोध उमड़ेगा, चेतना तत्काल झकझोरेगी कि अरे मैं क्रोध कैसे करूं? मैं आप लोगों को अड़तालीस मिनट की सामायिक नहीं देना चाहता, बल्कि चौबीस घंटे की समता देना चाहता हूँ। मैं आपको एक पाषाण की पूजा नहीं देना चाहता, बल्कि ऐसी पूजा और प्रार्थना देना चाहता हूं कि आप चौबीसों घंटे परमात्मा में जी सको। इसके लिए जरूरी है कि एक बार दृष्टि खुल जाए, अन्तर्दृष्टि जाग जाए। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि जैसी व्यक्ति की निगाह होती है, वैसा ही दृश्य व्यक्ति को नजर आता है। काले चश्मे वाले को दीवार काली दिखेगी और सफेद चश्मे वालों को सफेद । जब तक चश्मे पहने हुए हो, सत्य को नहीं देख पाओगे। मैं चाहता हूँ कि चश्मे उतर जाएं और भीतर की दृष्टि तीव्रतर हो जाए, ताकि आप खुद पहचान सकें, देख सकें कि आपके भीतर सम्भावनाएं हैं। ___ मैं शास्त्रों पर विश्वास रखता हूँ, धर्म पर भी विश्वास करता हूँ, लेकिन उसी शास्त्र और धर्म पर विश्वास करता हूं जिसे अपने जीवन में क्रियान्वित किया जा सके, जिसके सत्य को हम स्वयं जान सकें । वह शास्त्र हमारे लिए भारभूत बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ४८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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