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________________ से रूठ जाए तो वह आपकी खुशामद, पान-प्रसाद, सिंदूर, भेंट से प्रसन्न हो जाएंगे, लेकिन बीता हुआ समय कभी भी वापस लौटकर नहीं आ सकता। एक भिखारी ने दिनभर खूब भीख मांगी, मगर सुबह से शाम तक एक फूटी कौड़ी, एक अन्न का दाना न मिला। शाम के वक्त जब वह अपने घर लौटने लगा तो उसके एक सहधर्मी बन्धु ने, भिखारी का सधर्मी भिखारी ही होगा, कहातुम्हें आज भीख में कुछ नहीं मिला, मुझे मिला है। मुझे तीन मुट्ठी चावल मिले हैं, एक मुट्ठी तुम ले जाओ। मेरा कोई सधर्मी बन्धु भूखा मरे, ऐसा नहीं हो सकता। मैं थोड़ा कम खा लूंगा लेकिन तुम भूखे तो नहीं सोओगे। उसने एक मुट्ठी चावल अपने सधर्मी बन्धु को दे दिया। वह भिखारी एक मुट्ठी चावल लेकर चलने लगा तो देखा, सामने से देश का राष्ट्रपति चला आ रहा है। उसने सोचा, वाह! क्या सुकून मिले हैं। आज तो मैं राष्ट्रपति के पैरों पर गिर कर इतनी भीख मांग लूँगा कि मेरे जीवन भर का दारिद्र्य दूर हो जाए। तभी उसने देखा कि राष्ट्रपति ने स्वयं ही उसके पास अपनी कार रुकवा ली और बाहर आकर भिखारी के चरणों में लेट गया, कहने लगा - भाई मुझे कुछ दे दो। भिखारी को बड़ा गुस्सा आया। मन में आया कि पांवों में जूते नहीं हैं, वरना तेरे सिर पर जरूर दे देता। मैं तो सोचता था कि आज जनम-जनम के भिखारी का दारिद्र्य दूर हो जाएगा, पर यह राष्ट्रपति तो मेरा दारिद्र्य और बढ़ा रहा है। राष्ट्रपति ने कहा - देखो, तुम मुझे ना मत करना। आज जैसे ही मैं अपने सदन से बाहर निकला, तो एक ज्योतिषी ने कहा - आज इस रास्ते पर जो पहला आदमी तुम्हें मिल जाए, उस आदमी से तुम कुछ मांग लेना, यदि उसने तुम्हें कुछ दे दिया, तो तुम्हारा काम हो जाएगा। इसलिए मुझे ना मत कहो, कुछ दे दो। कुछ भी दो, मगर दे दो। भिखारी ने बड़ी मुश्किल से कांपता हुआ हाथ झोली में डाला। केवल करोड़पति के हाथ ही नहीं कांपते देते हुए, भिखारियों के हाथ भी कांपते हैं । करोड़पति कौन सा अपना सारा माल दे देते हैं। करोड़ों में से हजार देते हैं, सो जैसे करोड़पति करोड़ों में हजार देता है, वैसे ही भिखारी ने झोली के चावलों में से एक चावल निकाल कर राष्ट्रपति को दे दिया। राष्ट्रपति ने चावल लेकर भिखारी को धन्यवाद दिया और चला गया। पर भिखारी लगा राष्ट्रपति को गाली बकने । और कुछ करने में तो पैसा लगता है। गाली बकने में कुछ नहीं लगता। वह भिखारी राष्ट्रपति को गाली देते-देते घर पहुँचा। पत्नी ने पूछा, आज क्या बात है? इतनी गालियां किसे दे रहे हो? भिखारी बोला, क्या बताऊं? यहां के राष्ट्रपति को कोस रहा हूँ। वह भी भिखमंगा है। कहता है कुछ मृत नहीं मृत्युंजय हों । २३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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