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________________ प्रति आसक्ति टूटनी चाहिए, जिनको छोड़ना चाहिए, वे रंचमात्र भी नहीं छूट पाते । ये सूतकों की व्यवस्था पता नहीं किस सूत्रकार ने लिखी है ? कोई मर गया, बारह दिन तक मंदिर जाना छोड़ दो। जिस दिन दादा मर जाए, जिस दिन माँ मर जाए, जिस दिन पत्नी मर जाए या कोई और मर जाए तो अगर रोजाना एक घंटा मंदिर जाते हो तो उस दिन चार घंटे के लिए मंदिर जाना। जिस दिन आप बहुत शोक से ग्रस्त हैं, उस दिन परमात्मा आपके लिए शरणभूत होंगे। उस दिन आप परमात्मा को सही रूप में याद कर पाएंगे। शोक और कष्ट में तुम परमात्मा को ज्यादा स्मरण करते हो। इसलिए अगर किसी आदमी को दीक्षा भी लेनी है, संन्यास भी लेना है, तो मैं कहूंगा कि वह पहले तीन महीने तक श्मशान में रहे और वहाँ जलती हुई चिताओं को अपनी आंखों से देखे । देखे कि इम शरीर का अन्तिम हाल क्या होगा? दृश्य जीवन का अंतिम परिणाम, अंतिम समापन कितना निकृष्ट होता है । काया किस तरीके से देखते-ही-देखते राख हो जाती है। अपनी आंखों से जाकर देखें | जिस शरीर पर आज हम इतराते हैं, जिम शरीर को धोने, पोंछने, सजाने में हम दिन रात लगाते हैं, एक छोटा-सा छींटा भी लग जाए तो उसे धोते हैं। महिलाएं तो पर्स में पेपर सोप रखती हैं। न-न करते दिन में दस-बीस बार तो पेपर सोप से मुंह धो ही लेती हैं। जिस शरीर को रगड़ने के लिए, तुम इतना करते हो एक बार श्मशान में जाकर उसका हाल तो देखो । एक प्रथा पड़ी हुई है कि श्मशान तक केवल पुरुष जाते हैं । नहीं, महिलाओं को भी जाना चाहिए, ताकि वे अपनी आंखों से देख सकें कि जीवन का समापन कैसे होता है । शृंगार कैसे मटियामेट होता है । जिंदगी को चाहे जैसे गुजार लो, लेकिन मौत के समक्ष हर कोई नेस्तनाबूद और परास्त हो जाता है । मैंने किसी को मरते नहीं देखा । मन में जो औरों को देखने की भावना थी, वही शिथिल हो गई। एक प्रकार से मृत्यु हो गई। मेरे देखे, जो आज जीवित हैं, वह मृत्यु से गुजरने के बाद भी जीवित रहेगा और जो मृत्यु के बाद मृत होगा, वह आज भी मरा हुआ है । यह तो केवल शरीर और आत्मा का संयोग भर है । नदी - नाव का संयोग ! यह जितनी भी विचित्र लीला है, जीवन का जो कुछ भी रास है, वह सारा केवल एक संयोग का रास है। जिस दिन यह चेतना, यह ऊर्जा, सांस के स्पन्दन, यह दिन की धड़कन शान्त होगी, उस दिन सब समाप्त हो जाएगा। फिर सिर्फ इतना होगा, 'राम नाम सत्य है ' । इसलिए आज श्रीमद् राजचन्द्र जो सन्देश देना चाहते हैं, उसे बड़े ध्यान से लीजियेगा । यह महा सन्देश यही कहता है कि आम आदमी की तो बात ही क्या है, अगर कोई चक्रवर्ती Jain Education International मृत नहीं मृत्युंजय हों / १७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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