________________
अयोग हो योग का / 8९ __ आजकल क्रिकेट बहुत चला है। हारता है कोई, ओर जीतता है कोई। पर हमारे विचारों में उसका प्रभाव दिखाई पड़ता है। जीता कपिलदेव, आपने खुशी में पटाखे छोड़े। कुछ दिन पहले, जब भारत हार गया, तो लोगों ने गुस्से में अपने टो० वी० सेट तोड़ डाले। इसी को कहते हैं बहिर्जगत् का अपने अन्तर विचारों पर प्रभाव ।
विज्ञापन छपते हैं। एक ही विज्ञापन साल में पचासों बार, पचासों अखबारों में छपते हैं। क्यों ? भारत सरकार एकता. रखने के लिए प्रायः हमेशा विज्ञापन, विज्ञप्तियां छापती हैं। क्यों ? इसीलिए ताकि जनता के दिल-दिमाग में, उसके चिन्तन में, उसके विचारों में यह बात घर कर बैठे । बच्चा पैदा हुआ। उसका पिता कौन है, यह वह नहीं जानता। किन्तु वह सबसे यही सुनता है अमुक आदमी तेरा पापा, पिता है। तो वह भी उस व्यक्ति को पापा कहने लग जाता है। मूल बात यही है कि विचारों में जो बात जमी हुई है, वही क्रिया में आती है। विचार ही व्यवहार की कुंजी है। इसीलिए मैंने कहा कि शरीर से भी परे कोई और चीज है, जिसे साधना जरुरी है।
_इसीलिए मन्त्रों का विकास हुआ। मन्त्रों का अपना विज्ञान है। मन्त्र केवल शब्द नहीं है। मन्त्र-रचयिताओं ने प्राण फूंके हैं अपनी साधना के, आध्यात्मिक शक्तियों के। यदि मन्त्र सिद्ध हो गया, तो मन्त्र में निहित शक्ति से साक्षात्कार जब चाहो, तभी सम्भव है । ॐ से बढ़कर कोई मन्त्र नहीं है। मन्त्र विज्ञान का यही बीज है। इसी से सारे मन्त्र पनपे हैं। सभी धर्मों ने भले ही बनाये हो अपनेअपने मन्त्र, पर ॐ से सभी ने जुड़ना चाहा। जो व्यक्ति विचारों में ज्यादा बहता है, उसके लिए तो ॐ बाँध है। प्रत्येक व्यक्ति को ॐ का प्लुत उद्घोष प्रातःकाल में अवश्य करना चाहिये। जो मन्त्रों को विस्तार से बोलना चाहे, वे फिर नवकार-मन्त्र, गायत्री मन्त्र शिव-मन्त्र आदि मन्त्रों को बोलते हैं, उच्चारण करते हैं। वैसे ती बहुत सारे मंत्र हैं। मन्त्रों की संख्या सात-आठ करोड़ तक है। ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org