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३६ / अमीरसधारा
नहीं जरूरत योग की, जिसका नीड़ निवास । नीड़ छोड़, भटके उड़े, करे योग अभ्यास ||
जो पंछी नीड़ में है, उसे नीड़ में आने की बात ही कहनी बेवकूफता है। जो पंछी नीड़ को छोड़कर, आकाश में भटक रहा है, वही वापस आने का अभ्यास करे, वही नीड़ की दिशा में उड़े। ध्यान - साधना और योग - साधना उसी के लिए है, जो बाहर है, भटक रहा है, दिग्भ्रमित है, ताकि वह सम्यक् मार्ग पर आरूढ़ हो सके, स्वयं को पा सके, नीड़ में आ सके। स्वयं का स्वयं में आने के लिए दृष्टि को लगाना ही ध्यान है और जो लगाता है, वही ध्यानी है, वही स्वार्थी है, परम स्वार्थी है। जो ऐसा स्वार्थी है, सच्चे अर्थों में वही निःस्वार्थी है स्वयं की दृष्टि में वह स्वार्थी होगा, पर दुनिया की दृष्टि में वह निःस्वार्थी है। क्योंकि उसके सारे कर्म दुनिया के लिए कल्याणकारी होंगे जो स्वार्थपरक कम दुनिया के लिए अहितकर है, वह खोटा स्वार्थ है, और खोटे सिक्के की तरह लोग उसे दूर धकेलते हैं। जो स्वार्थपरक कर्म दुनिया के लिए हितकर और श्रेयस्कर हैं, वह सच्चा स्वार्थ है, और असली सिक्के की तरह लोग उसे पास रखते हैं, सहेजकर, सम्हालकर रखते हैं। उसके लिए उनके मन में आदर होता है। ध्यान में लगे स्वार्थी के कर्म असली सिक्के की तरह सब परिस्थितियों में, सभी स्थानों में, सभी युगों में सर्वमान्य होते हैं। हमें साधना है ऐसा ही स्वार्थ, जो स्वकल्याण भी करता है और परकल्याण भी, लोककल्याण भी।
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