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२८ / अमीरसधारा अँधियारा भगाते हैं या झोपड़ियों में आग लगाते हैं। यह हमारे ऊपर ही आधारित है। स्वार्थ दोनों में सधता है।
ज्ञान तो प्रायः बहुतों को रहता है कि वास्तविक स्वार्थ क्या है और जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है; पर ज्ञान रखते हुए भी लोग दिग्भ्रमित हो जाते हैं और क्षणिक सुख के लिए गलत रास्ता अपना बैटते हैं। न केवल रास्ता अपनाते हैं, बल्कि उसमें ऐसे उलझ जाते हैं, जैसे मकड़ी अपने जाल में। दूसरों को फंसाने के लिए बिछाये गये जाल में जब व्यक्ति स्वयं ही फंस जाता है, तो दृश्य देखने जेसा होता है।
जब आदमी का पैर गन्दा रहता है, तब उसे कीचड़ में ही चलने में आनन्द आता है। जब तक पैर स्वच्छ रहते हैं, तभी तक वह गन्दगी से बचकर चलता है। खून से सने कपड़े पर यदि दोचार छींटे और भी लगे, तो वह उसकी परवाह नहीं करता। जो अपराधी पुलिस की पकड़ में आ गया है, उसे यदि हम दो-चार चपत लगा दें, तो उसके कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जो व्यक्ति बहुत लोगों की हत्या कर चुका है, वह यदि दो चार की और हत्या कर दे, तो उसके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। पर जो निरपराधी है, यदि चपत दिखाया भी जायेगा, तो वह उसका विरोध करेगा। अहिंसक के लिए एक चींटी को मारना भी विचारणीय बन जाता है। स्वच्छ कपड़े पर कौन कीचड़ गिरने देगा ? होली के दिन रंग के छींटे कोई डाले तो मंजूर है, पर दिवाली के दिन क्या कोई रंग के छींटे डलवाना पसंद करेगा? ____ एक व्यक्ति ने अपने बेटे से कहा, बेटे ! मेरे चोले पर स्याही गिर गई है, जरा साफ कराना तो। बेटा गया घर में, और उठा लाया स्याही की बोतल। और पिता से कहा, लो पापा ! चोला धो लो, साफ कर लो। पिता ने सिर पर हाथ मारा। क्योंकि स्याही से सना
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