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________________ जिनत्व : गंगासागर से गंगोत्री की यात्रा / २१ जिन खोजा, तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ । मैं बौरी बूड़न डरी, रही किनारे बैठ ॥ कीमत तो हर चीज की चुकानी पड़ती है। जो चीज जितनी ही मूल्यवती रहती है, उसकी कीमत भी उतनी ही ऊँची रहती है। कौड़ियों की भी कीमत होती है। घोंघे और सीप की भी कीमत होती है, लेकिन मोती की कीमत सबसे ज्यादा होती है। घोंघे और सीप को तो किनारे पर भी पाया जा सकता है। उनको पाने में कोई तरह की जोखिम उठाने की भी जरूरत नहीं होती है। लेकिन मोती किनारे पर नहीं मिलते । उसकी कीमत चुकाने के लिए जान की बाजी लगानी पड़ती है। समुद्र की अतल गहराई में पैठना पड़ता है, गोताखोरों की तरह।। कोई कितना भी समर्थ, बलवान्, ज्ञानवान् क्यों न हों, लेकिन बिना प्रयास के, बिना पुरुषार्थ के भरपेट भोजन भी नहीं मिल सकता, जिन होना तो बहुत दूर की बात है। सिंह बहुत बड़ा पराक्रमी है, किन्तु उसे भी अपने भोजन के लिए झाड़ियों में बैठकर घात लगानी पड़ती है। जुगत बाँधनी होती है और कभी-कभी उसे भूखा भी रह जाना पड़ता है। जिनत्व की साधना बहुत ऊँची चीज है। इसकी सिद्धि जन्म से नहीं, कर्म से करनी पड़ती है। सम्भव है, हमें इसके लिए न केवल इस जन्म को खर्च करना पड़े, अपितु जन्म-जन्मान्तर भी लग जाएँ। पर जिसके भीतर जिन होने का दृढ़ संकल्प है, खुशी-खुशी जीवन की सारी कठिनाइयों को सहने का अटूट धैर्य है, असफलताओं और विध्नों में जिनका साहस कुंठित न हो सके, जिस तरह काँटों में खिलने वाले गुलाब की तरह जो कठिनाइयों में भी सदा प्रसन्नता का अनुभव करते हैं वे ही जिनत्व के अधिकारी हैं। इसके विपरीत जो व्यक्ति संयम और तप की कठिनाइयों से डरते हैं, जिनके हृदय में न तो दृढ़ निश्चय है, और न साहस या धीरज है, वे कायर और डरपोक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003964
Book TitleAmiras Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1998
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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