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१४ / अमीरसधारा प्रश्न उठता है कि किस पर जय करें? उत्तर भी बिल्कुल सामने है। ज् के बाद जो इ है, उस इ का अर्थ होता है इन्द्रियाँ, इन्द्रियों के विषय, मनोविकार, राग, द्वेष, लोभ, काम, क्रोध। ये सभी विकार जीव के आभ्यन्तर शत्रु हैं। जिन शब्द में भी इ आन्यन्तर ही है। इसलिए जो इ पर विजय पा लेता है, जो इ शून्य हो जाता है यानी निर्विकार हो जाता है, वह भगवत्ता पा लेता है जिनत्व की। __अगर हम जिन में से इ को हटा दें, तो क्या शब्द बनेगा ? आधा ज् और पूरा न। व्याकरण के अनुसार त वर्ग के अक्षर च वर्ग में परिणत हो जाते हैं, यदि उनका योग च वर्ग के साथ होता है। तो ज् जो च वर्ग का है और न जो त वर्ग का है, दोनों को मिलाने से शब्द बनता है ज्ञ। ज्ञ का मतलब है ज्ञानी। जानने वाला ज्ञ है। इसलिए जिन ज्ञाता है, आत्मज्ञाता है, स्वपर ज्ञाता है, सर्वज्ञ है। ज्ञ के विपरीत है अज्ञ । जो कुछ नहीं जानता, जो अनपढ़-गँवारु है, वह अज्ञ है । ज्ञानी
और बुद्धिमान् अपने विकारों को जीतता है। साधारण लोग अपने विकारों को नहीं जीतते। इसलिए वे अजिन हैं, अज्ञ हैं, संघर्षहारे हैं ।
'जे तें जीत्या रे, ते मुझ जीतियो रे' आनन्दघन कहते हैं यह । जिन ने जिन को जीता, उनको हम न जीत पाये। उन्होंने तो हमें जीत लिया है। हे प्रभु ! तुमने क्रोध को जीता, किन्तु क्रोध ने हमें जीत लिया तुमने कषायें जीतीं, किन्तु कषायों ने हमें जीत लिया। कहाँ है हमारा पौरुष ! हम तो बह गये प्रवाह में। प्रवाह में बहना मुर्दापन है। मेरा एक गीत है, संघर्ष ।
मिलन की मुझे नहीं है चाह, विरह की जब तक मिलती राह । विरह है जीवन का संघर्ष, बिना संघर्ष सत्य दुर्धर्ष ॥
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