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जिनत्व : गंगासागर से गंगोत्री की यात्रा / ३ हम उलट देंगे, तो राधा हो जायेगा। धारा और राधा दोनों में आधापन है। राधेश्याम में से राधा को निकाल दो, तो श्याम भी आधा हो जायेगा। राधा भी मुख्य है, धारा भी मुख्य है। गंगा की धारा भी हम चाहते हैं और कृष्ण की राधा भी हम चाहते हैं। मैंने जिस अर्थ में धारा और राधा कहा, उसमें राधा पुरुषार्थ की प्रतीक है, वीरत्व की प्रतीक है, महावीरत्व की प्रतीक है। जबकि धारा भक्ति मार्ग है, समर्पण का मार्ग है, नारद रामानुज, मीरा और रामकृष्ण परमहंस का मार्ग है। ____जिन का मार्ग संघर्ष का मार्ग है। चूंकि क्षत्रिय संघर्षशील होते हैं। इसीलिए क्षत्रिय जाति जिनत्व की साधना बहुत सहजतया कर सकती है। महावीर जिन थे, जिनेश्वर थे, खास बात यही है कि वे क्षत्रिय थे। चौबीसों के चौबीसों तीर्थङ्कर क्षत्रिय थे। इन्होंने वीरों के मार्ग का निर्माण किया, अपनी प्रकृति के अनुसार। और वह मार्ग ही जिन-मार्ग है। जैनधम इसी का परिवर्धित रूप है। ____ मैंने कहा, क्षत्रियत्व पर, वह बहुत सोच-समझकर कहा। मेरे विचार से क्षत्रियत्व और जिनत्व के साथ अच्छा सम्बन्ध सध सकता है। व्यक्ति के क्षत्रियत्व का ओज ज्यों-ज्यों कम होगा, जिनत्व की साधना से वह त्यों-त्यों दूर होता जायेगा। इसका मतलब यह न समझें कि जिनत्व एकमात्र क्षत्रियों का ही अधिकार है, कि यह क्षत्रियों की बपौती है। जिनत्व का सम्बन्ध तो साधना से है, व्यक्ति के पौरुष से है। क्षत्रिय के पास अप्रतिम शक्ति होती है। जब वह अपनी उस शक्ति को जिनत्व के रण में, साधना के संग्राम में लगा देता है, तो वह सफलता पाकर ही दम लेता है । क्षत्रिय जन्मजात संकल्पशील होता है, संघर्षशील होता है। जिस कार्य को करने की उसने ठान ली, उसे वह जान की बाजी लगाकर भी पूरा करना चाहता है।
ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों साधना के पूरक ही हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र-जो ये चार विभाग हमारे भारतीय लोगों में
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