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लिए एक शुभ लक्षण है।
आज भले ही हमारा मूल धर्म से संबंध कम हो चुका है, हमारा धर्म महज दिखावे का धर्म रह गया है, लेकिन परमात्म-पुरुषों की स्मृति की किरण जीवन के अंधकार को तिरोहित कर सकती है। अंधकार कितना भी सघन क्यों न हो, प्रकाश की एक किरण भी उसे हटाने की पहल कर सकती है। यदि हम किरण को आधार मान लें, तो निश्चित ही यह किरण, वह आधार-सूत्र बन सकती है, जो हमें सूरज तक ले जा सकती है। बूंद सागर तक ले जा सकती है, तिनका डूबते के लिए सहारा बन सकता है।
माना, शुरू में ही किसी को सूरज नहीं मिल जाता, प्रकाश का भंडार नहीं मिल जाता। जीवन के हर मूल्य की शुरुआत चिराग से होती है। महापुरुषों की याद हमारे लिए ऐसे ही चिराग की तरह है। हम एक किरण को ही अपना लें, तो उसके सहारे सूरज तक पहुंच सकते हैं।
प्राचीन ग्रन्थों में अष्ट सिद्धियों की चर्चा आती है। अणिमामहिमा, आठ सिद्धियों में पहली और दूसरी सिद्धि हैं। अणिमा यानी बड़ी से बड़ी चीज को छोटे में बदलने की क्षमता और महिमा यानी छोटी-से छोटी चीज को विराट बना डालने की क्षमता। परमात्मा की, महापुरुषों की स्मृति, उनके प्रति होने वाली श्रद्धा भले ही हमें अध्यात्म् के मार्ग का एक शुरुआती कण भर लगे, पर एक कंकरी भी तालाब को तरंगित कर सकती है, वर्तलों से घेर सकती है। चिनगारी दावानल का रूप ले सकती है। सूरज न हो, तो दीया भी सूरज का पर्याय हो जाता है।
माटी का दीया सिर्फ माटी का ही नहीं है। वह प्रकाश की क्रांति का संवाहक है। माटी के दीये को हम तुच्छ नहीं कह सकते। दीया ही न होगा तो प्रकाश की पहचान कहां से करोगे। इसलिए दीये का अर्थ है, किरण का मूल्य है। राम की याद आती है, तो इसके कुछ मायने
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याद बहुत कुछ कर सकती है, चाहे वह राम की हो, कृष्ण की हो, जरथुस्त्र या महावीर की हो। वह हमें पूलक से भर सकती है। खुमारी दे सकती है। अभीप्सा जगा सकती है। गुणानुरागिता को जन्म
मानव हो महावीर / ८
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