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परिस्थितयां आ गई हैं, पर ये हमेशा रहने वाली नहीं हैं। तब उसने बताया कि तावीज में क्या लिखा था? उसके बाद वह हमेशा के लिए राजहमल छोड़कर चला गया।
एक बार मुझे आहारचर्या के लिए जाना पड़ा, तब एक सज्जन ने कहा कि 'इंदौर में हमेशा होने वाले प्रवचनों में जो लोग जाते हैं वे आपके प्रवचन में नहीं आए हैं और जो कहीं नहीं जाते, वे आपका प्रवचन सुनने आए हैं। यह तो आश्चर्य की बात है। मैंने कहा कि कोई आश्चर्य की बात नहीं है। कल वे अनुकूल थे, आज ये अनुकूल हैं। ये भी तो कल प्रतिकूल हो सकते हैं। जो प्रतिकूल है, वह कल अनुकूल हो जाए, यह तो संयोग है।
__ अगर कोई आज मुझसे प्रसन्न है तो मैं गर्व नहीं करता और कोई रूठा है तो भी मुझको कोई शिकायत नहीं। किसी के प्रति इसी कारण आसक्ति नहीं हो पाती। आप सबसे मुझे बहुत प्रेम है, पर आसक्ति या राग नहीं है क्योंकि मैं जानता हूं कि अगर यह आज अनुकूल है तो कभी भी प्रतिकूल हो सकता है। जो प्रतिकूल है, उनके प्रति द्वेष इसलिए नहीं है, क्योंकि वे भी कल तक अनुकूल थे। यह तो संयोग है। व्यक्ति को वीत-द्वेष होना चाहिये।
जो होना होता है वह होता है। जब जिस रूप में होना होता है, तब वह उस रूप में होता चला जाता है। तुम्हारी समता इसी बात में है कि जब दोनों परिस्थितियां आती हैं तो तुम कितनी तटस्थता बनाए रख पाते हो। जब चक्की चलती है, तब वही दाना बचा हुआ रहता है, जो कील से चिपका हआ रह गया है। जो तटस्थ रहा, वही बच गया। हर परिस्थिति में अगर मानसिक सन्तुलन बनाए रखते हो, अगर साक्षी-भाव से जीते हो तो एक औषधि हर समय तुम्हारे साथ है। कैसी भी अच्छी या बुरी स्थितियां बनेंगी, लेकिन तुम्हारे लिए न कोई अच्छी होंगी, न बुरी होंगी। कोई मर रहा है, तो तुम्हारे लिए नहीं मर रहा है। कोई जन्म ले रहा है तो तुम्हारे लिए जन्म नहीं ले रहा है। दुनिया में हजारों समस्याएं हैं, पर तुम्हारे लिए नहीं है। तुम हर स्थिति के मात्र साक्षी भर हो।
एक बात का हमेशा बोध रखिये कि यहां कोई बात शाश्वत नहीं, कोई बात ध्रुव नहीं, कोई नित्य नहीं है।
प्रज्विलत हो प्रज्ञा-प्रदीप | ८०
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