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शरीर है जिसका नाम मन है । फ्रायड ने इसे चेतन और अवचेतन मस्तिष्क कहा है, महावीर ने उसी को वचन और मन कहा है ।
विज्ञान ने तो हर चीज के तीन आयाम माने हैं, लेकिन एक चौथा आयाम और होता है । यह सबसे महत्वपूर्ण आयाम है । उस चौथे आयाम के कारण ही बाकी तीन आयाम परिभाषित किए जा सकते हैं । उसके कारण ही किसी तत्त्व की लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई को मापा जा सकता है। आखिर बिखरे कणों को बांधने वाला है कौन? वह है उस वस्तु की चेतना । वह चेतना ही समय है । यही तत्त्व है जो किसी के लिए जन्म का कारण बनता है तो किसी के लिए मृत्यु का । एक ही क्षण में पड़ौसी के घर बच्चा होता है और थाली बजती है। वहीं दूसरे पड़ौसी के यहां औरत चिल्ला उठती है, क्योंकि उसका बच्चा मर चुका होता है । क्षण वही है । किसी की चेतना निकली, किसी में चेतना ने प्रवेश किया। कहीं का चिराग जला और कहीं का दीप बुझा । जिसमें चेतना आई उसका नाम जीवन है और जिसकी चेतना निकल गई, उसकी मृत्यु हो गई ।
समय की भूमिका महत्वपूर्ण है । समय ही मनुष्य की चेतना है । इसलिए जो व्यक्ति अपनी चेतना को उपलब्ध हो रहा है, वह वास्तव में समय को उपलब्ध हो रहा है । वह स्वयं को और सामायिक को उपलब्ध हो रहा है। मैं समय के बारे में कितना भी बोल दूं, मैं जानता हूं, फिर भी समय को पूरी तरह व्याख्यायित नहीं किया जा सकेगा ।
समय इतना रहस्यमयी है कि उसमें जितने अधिक डूबोगे, रहस्य उतने ही ज्यादा गहरे होते चले जाएंगे। अगर समय कोई चीज होती तो उसकी परिभाषा हो सकती थी । उसकी कोई सीमा तय की जा सकती थी। समय का कोई स्थान होता तो उसे परिभाषित किया जा सकता था, लेकिन समय का न तो कोई स्थान है और न ही समय कोई चीज है। समय तो बस, समय है । समय की उपमा समय को छोड़कर और कोई नहीं है ।
किसी भी मकान की व्याख्या करना आसान है । उसकी ईंटें, चूना, गारा आदि का विश्लेषण हो सकता है, लेकिन समय ऐसी कोई चीज नहीं है । समय को समझ कर भी कोई पूरी तरह नहीं समझ पाया है । जो व्यक्ति सामायिक को उपलब्ध हो गया, उसने समय को भली
समय की चेतना / ६२
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