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________________ रह जाएगा, मृत हो जाएगा और मृतक के लिए समय का महत्व नहीं है। मृतक तो खुद ही सड़ जाएगा। बिना समय के समृद्धि हो ही नहीं सकती। यदि आदमी के अंतर्मन से समय निकल जाए, समय की चेतना निकल जाए या चेतना का समय निकल जाए तो फिर गति और वृद्धि नहीं है। फिर तो न सांस है, न प्राण और न ही प्रगति। समय में गति सामायिक है, समय में स्थिति सामायिक है। समय के अभाव में सब निरर्थक है। मृत का काम ही है सड़ना और गलना । समय निकल गया तो फिर स्पंदन ही कहां रहेगा? मृत चीज का सड़ना-गलना बहुत तेजी से होता है। चेतना के साथ ऐसा नहीं होता। जब तक चेतना है, शरीर में एक छोटा-सा घाव भी हो जाए तो उसे नासूर बनने में छह महीने लग जाते हैं, लेकिन मृत शरीर बहुत जल्दी गल जाता है। मेरे देखे व्यक्ति को समय का भरपूर उपयोग करना चाहिये। खूब मेहनत करना चाहिये। पचास की उम्र तक समय का जी भर उपयोग करो। अभी अगर काम से जी चुराने लगे, तो याद रखना बुढ़ापे में कोई एक गिलास पानी पिलाने वाला नहीं मिलेगा। इस हाड़-मांस में जंग मत लगने दो। शरीर एक शस्त्र की तरह सदा चुस्त, तैयार रहना चाहिये। पचास तक गति, पचास के बाद स्थिति । अन्तर-स्थिति। जो होना था, हो लिया। जो करना था, कर लिया। अब धीरज। अब स्थिति। वेदों के संन्यासाश्रम के पीछे मूलभूत यही भावना है। समय ही चेतना है। मैं समय पर इसीलिए चर्चा कर रहा हूं, क्योंकि समय में ठहरने का नाम ही सामायिक है। समय में स्वयं को स्थिर करने का नाम ही समाधि है; ध्यान है। यदि शरीर रुक जाए या ठहर जाए तो इसका नाम आसन है और सांस रोकी जाए तो उसे प्राणायाम कहेंगे। लेकिन जब समय में चेतना रुक जाती है तो उसे सामायिक कहेंगे, समाधि कहेंगे। हम प्रायः तीन आयामों की चर्चा करते हैं, लेकिन जीवन 'त्रिआयामी' नहीं है। विज्ञान के अनुसार तो प्रकृति में लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई या गहराई के तीन आयाम ही हैं। ये तीनों आयाम पदार्थ को परिभाषित करते हैं। लेकिन जब हम समय की बात करेंगे तो एक आयाम और जुड़ जाएगा। इसमें शरीर, विचार और मन को भी देखा जाता है। शरीर एक चरण है, उसके भीतर एक और सूक्ष्म शरीर है, जिसका नाम वचन है, विचार है। विचारों के भीतर भी एक और सूक्ष्म मानव हो महावीर / ६१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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