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________________ आतंक और हिंसा है। सोच में अगर सत्य हो, शिवत्व हो, सौन्दर्य हो, तो तुम्हारा सोच तुम्हारे लिए अन्तर की सुवास बन सकता है, प्रकाश हो सकता है। ___ अभी तो तुम्हारे भीतर फालतू के विचार चलते रहते हैं और वह भी दिन-रात, सो गये तो सपने में भी। सोच-विचार सार्थक हो, तो सोच तुम्हें ऊंचा उठा सकता है। एक उजड्ड सोच आदमी को कभी उर्वर नहीं बना सकता। सोच को सकारात्मक रूप दो, सार्थक और सृजनात्मक. दिशा दो। भीतर का अंधकार कितना भी घना क्यों न हो, अमावस का भी अंधकार क्यों न हो, आखिर वह बलहीन है, निर्बल है। ज्योति कितनी भी छोटी क्यों न हो, फिर भी वह सबल है, क्योंकि ज्योति परमात्मा का अंश है। हमारे ऊंचे सोच की ज्योति हमें अंधकार से बचाये रखेगी, सुख-शांति के प्रकाश से अभिभूत रखेगी। __सम्भव है, आज तुम हारे हुए अपने-आपको महसूस करो, पर नहीं। अन्ततः तुम जीतोगे। 'सत्यमेव जयते' छोटी-मोटी लड़ाइयां भले ही हार जाओ, पर आखिर विजयश्री तुम्हारे हाथ होगी। सत्यमेव जयते - आख़िर तो सत्य ही जीतता है। सत्य खुद समर्थ है हर हार से ऊपर उठने के लिए, अपनी सुरक्षा के लिए। कृपया इधर-उधर की चिंताओं को छोड़ो, मन में पल रही ऊल ज़ललता से ऊपर उठो। हृदय में, अपने विचार में, अपनी सोच में सच्चाई और सौन्दर्य को स्थान दो। तुम तो बदलोगे ही, तुमसे तुम्हारा जहान भी बदलेगा। अच्छी पुस्तकें पढ़ें, अच्छे लोगों से अपनी मैत्री रखें, कोई भी काम करने से पहले यह सहज जांच लें कि इससे मेरा और औरों का बुरा तो नहीं हो रहा है। ध्यान रखने के बाबजूद यदि कोई गलत या अमंगल कार्य हो जाये, तो रोये नहीं। अपने विश्वास-पात्र को कहकर या तो मन हल्का कर लें, या उसके बोझ से स्वयं को अलग करें। भविष्य में सावधान रहने का संकल्प कर लें। ध्यान करें, ध्यानपूर्वक जिये। मूल मंत्र है : सार्थक पहलुओं पर सोचें। उन्नत विचार से अपने आपको उन्नत बनाएं, ऊँचा उठाएं। wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww aamananmaamanaaaaaamanamaAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAD मानव हो महावीर / ५६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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