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________________ इन्हें शुभ करने के लिए हम 'सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् के बारे में निरंतर सोचेंगे तो हमारे भीतर ये तीनों घटित होंगे ही। कोई आदमी कामुक है और बलात्कार करना चाहता है तो वह निरंतर इस बारे में सोचते-सोचते बलात्कार का रास्ता ढूंढ ही लेगा। इसी तरह कमाने वाला धन प्राप्ति का, प्रतिष्ठा का इच्छुक प्रतिष्ठा प्राप्ति के रास्ते ढूंढ लेगा। जब सोचने से ये सब उपलब्ध हो सकते हैं तो सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् क्यों नहीं उपलब्ध हो सकते? आदमी जैसा सोचेगा वैसा ही हो जाएगा। जैसा अपने को बनाना चाहेगा, वैसा बन जाएगा। जो बिन्दु सुहाए उसी के बारे में सोचो । शिव से प्रेम है तो उसके बारे में सोचो। एक केन्द्र भी जाग गया तो शेष दोनों को जागना ही पड़ेगा। जिसे सौन्दर्य से प्रेम है, वह कभी अशिवकर काम नहीं करेगा, असत्य का प्रयोग नहीं करेगा, चोरी नहीं करेगा क्योंकि चोरी से बड़ा कुरूप सत्य दूसरा कोई नहीं है। वह सेक्स का सेवन भी नहीं करेगा। सौंदर्य के मायने यहां उस सौंदर्य से नहीं है जो पल-पल बदलता रहता है। मैं तो उस सौंदर्य की बात कर रहा हूं जो जीवन में फूल खिलाता है और वहां कोई भी चीज गलत नहीं होती, हो भी नहीं सकती। एक बिन्दु को पकड़ लेने वाले आदमी के अधिकार में शेष दो बिन्दु भी आ जाते हैं। कोई भी एक बिन्दु चुन लो। जैसा सोचोगे, वैसे ही बन जाओगे। प्रेम के बारे में सोचोगे तो आपकी वाणी में प्रेम छलकेगा। अब्राहम लिंकन घर से असेम्बली के लिए रवाना हुए। राह में उन्हें एक जगह कीचड़ में जीवन और मौत से संघर्ष, करता एक सूअर दिखाई दिया। वे वहीं रुक गए और जब तक वह सूअर कीचड़ से बाहर नहीं निकल आया, वे वहां से रवाना नहीं हुए। जिसके मन में प्रेम होगा, वही ऐसा कर सकेगा। इसलिए कहता हूँ कि शुभ का चिंतन निरंतर जारी रहना चाहिए। बदलाव आएगा, जरूर आएगा। यही तो सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् का मूल मंत्र है। सोच ऊंचा हो, व्यक्ति को उत्सवित और अपराध-मुक्त करने के लिए यह जरूरी है। 'तिहाड़' में इसके प्रयोग किये गये और आश्चर्यकारी परिवर्तन सामने आए। मैंने अभी इन्दौर और जोधपुर के कारागृहों में विचार-परिवर्तन के प्रयोग किये। कैदियों को इसकी जरूरत है। गलत और विकृत सोच के चलते ही दुनिया में इतने अपराध, सोच हो ऊंचा / ५८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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