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इस बात का अहसास तुरंत हो जाएगा।
पैसे के लिए आदमी अपने ईमान को बेच डालता है। भाई अपने भाई की हत्या कर देता है, जन्मदाता बाप को भी नहीं छोड़ता। पैसे का नशा ऐसा ही होता है। धन आए मुट्ठी में, ईमान जाए भट्टी में। आदमी सुबह से पैसे के लिए जुटता है। दिन भर यह दौड़ जारी रहती है। मैं नहीं कहता कि धन कमाओ ही मत। धन के अलावा भी जीवन में विचार के कई बिन्दु हैं, दीप हैं, जो जलने चाहिये। धन भी जरूरी है। उससे हम जीवन की सुख-सुविधाएं बटोरते हैं। पैसा न हो तो समाज में दो कौड़ी की इज्जत न होगी।
पुरुष धन खर्च कर अपने पापों का प्रायश्चित कर लेता है, औरतें तपस्या, मासखमण आदि कर प्रतिष्ठा अर्जित कर लेती हैं। तो क्या धर्म के दो ही रूप हैं - दान और तप? समाज में आयोजित एक समारोह में पैसे वाले को माला पहनाई जा रही हो, उस वक्त आप देखिएगा, वहीं एक कोने में कोई गरीब दुबका बैठा सारा तमाशा देख रहा होगा। उसके दिल पर क्या बीत रही होगी, इसका अंदाज वह खुद ही लगा सकता है। यह कोई नहीं पूछता कि पैसा किस तरह कमाया, बस पैसा चाहिए।
जो लोग धर्म करते हैं, वे भी इसलिए करते हैं कि और धन कमाने का रास्ता खुले। गुरु से ज्ञान पाने कम और धन कमाने की तिकड़में सीखने की चाह में ज्यादा लोग आते हैं।
धर्म के द्वार पर विचारों की शुद्धि के लिए, अपने को ऊपर उठाने के लिए आओ। बाहर-बाहर धर्म के लिए कुछ करना दिखावा होगा; जीवन को ऊंचा उठाना और बात है। गरीब की आत्मा में धर्म के प्रति जितनी निष्ठा होगी, उतनी अमीर के मन में न होगी। धन और धर्म अलग-अलग चीजे हैं, लेकिन हमने इन्हें मिला दिया है। धन आवश्यकता है, धर्म मनुष्य का जीवन । धन से सुख-सुविधाएं बटोरी जाती हैं, जबकि धर्म से जीवन के मूल्य उपलब्ध किए जाते हैं।
पैसा कमाने के लिए आदमी हर जायज-नाजायज काम करने को तैयार हो जाता है, लेकिन ऐसा करके तुम अपना जीवन सफल नहीं बना पाओगे, जीवन में विषमताएं ही पैदा होंगी।
मानव हो महावीर / ५५
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