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स्थिति कैसी है? हमारे विचार किस केन्द्र पर घूम रहे हैं, इस बारे में सोचना होगा। हमें विचारों की विपश्यना, विचारों की शुद्धि करनी होगी। ऐसा करके हम अपनी ही विपश्यना करेंगे। आत्म-ज्ञान और कुछ नहीं, अपने बारे में जान लेना, जैसी वास्तविकता है, वैसा जान लेना ही तो आत्म-ज्ञान है। ऐसा नहीं है कि आत्म-ज्ञान आज घटित नहीं होगा। मनुष्य के साथ ही आत्म-ज्ञान घटित होता है, हो रहा है
और होता रहेगा। जब तक आदमी अपने आप को नहीं समझेगा, उसके भीतर आत्म-ज्ञान घटित न होगा। आदमी ने अपने विचारों को देखा और जाना कि उसके भीतर क्रोध है और वह क्रोध से परेशान है तो समझो, उसने आत्म-ज्ञान की पहली सीढ़ी चढ़ ली, आत्म-ज्ञान का पहला चरण पार कर लिया। अपनी अच्छाइयों को जान लेना ही आत्म-ज्ञान नहीं है, अपनी बुराइयों को जान लेना भी आत्म-ज्ञान है। ____ आत्म-ज्ञान में पहला शब्द आत्मा से बना है। आत्मा कोई शब्द नहीं है, काल्पनिक चरित्र नहीं है। आत्मा यानी हम स्वयं। हमारा अस्तित्व आत्मा के कारण ही है। 'मैं' का वाच्यार्थ ही आत्मा है। वही तत्त्व आत्मा है, जिसके रहते हम जीते हैं और जिसके निकल जाने पर हमारे परिजन हमें श्मशान छोड़ आते हैं। क्रोध भी हमारी आत्मा से ही
आ रहा हैं और प्रेम भी हमारी आत्मा से ही आ रहा है, इन्हें ऊर्जा हमारी आत्मा से मिल रही है। आत्मा ठंडी हो गई तो चित्त, मन, शरीर, प्राण सब शांत हो जाएंगे। ये सब एक दूसरे में घुले-मिले हैं।
हम कभी भी पूर्ण शुद्ध नहीं रहे हैं। अशुद्धियां हमारे साथ रही हैं, लेकिन शुद्ध हुआ जा सकता है। स्वयं को शुद्ध बनाया जा सकता है। विचारों की विपश्यना के लिए भीतर दीप प्रज्वलित करना जरूरी है। यदि हम सत्य के बारे में सोचेंगे तो सत्य पैदा होगा। शिवत्व के बारे में सोचेंगे तो शिवत्व घटित होगा और सौन्दर्य के बारे में चिंतन करेंगे तो सौन्दर्य का रसास्वादन कर सकेंगे।
___ आदमी जिन विचारों पर घूमता है, उनके अलग-अलग प्रभाव होते हैं। उसके लिए धर्म, ध्यान, सामायिक, प्रतिक्रमण दिखावा भर है। ऊपर-ऊपर आदमी की मूल विचारधारा एक ही बिन्दु पर घूमती हैपैसा, प्रतिष्ठा या काम-वासना। आदमी चौबीस घंटे इन तीनों के आसपास ही घूमता है। जो व्यक्ति विचारों की विपश्यना करेगा उसे
सोच हो ऊंघा/ ५४
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