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से उसका साक्षात्कार न हो। सौन्दर्य के बारे में सोचोगे तो सौन्दर्य उत्पन्न होगा तथा शुभ के बारे में सोचोगे तो शुभ प्रकट होगा। सत्य के बारे में चिंतन करोगे तो सत्य को प्रकट होना ही पड़ेगा।
मनुष्य जैसा सोचेगा, उसका जीवन स्वतः ही वैसा होता चला जाएगा। व्यवहार में वही आता है, जैसा व्यक्ति सोचता है। यदि कोई व्यक्ति जाग्रत अवस्था में अपने व्यवहार में किसी विचार को अभिव्यक्त होने से बचा ले, तो सुषुप्तावस्था में उस विचार की अभिव्यक्ति अपने आप होगी। स्वप्नावस्था में उस चित्त की अभिव्यक्ति अपने आप होगी। बहुधा ऐसा होता है कि आदमी दिन में बड़ी बहादुरी की बात करता है, लेकिन रात्रि में चोर को देखते ही उसकी घिग्घी बंध जाती है, वह भयभीत हो जाता है।
प्रायः जो लोग क्षमा, प्रेम आदि के बारे में दुनिया के सामने जितनी गहरी अवधारणा प्रकट करते हैं, उनके भीतर उतनी गहरी अवधारणा होती नहीं है। मनुष्य की मक्ति इसीलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि मनुष्य दुनिया के सामने तो क्षमा, प्रेम, वात्सल्य आदि की अवधारणाएं रखता है, लेकिन भीतर क्रोध और घृणा भरी रहती है। आदमी अच्छे कपड़े पहनकर या फूलों की खुशबू से अपने भीतर की गंदगी को ढांप लेता है। भीतर पड़े कचरे को दूर करने का नहीं, वह उसे ढंकने का अधिक प्रयास करता है। कोई अच्छी बातें करके तो कोई अच्छे कपड़े पहनकर अपनी गंदगी को ढंक लेना चाहता है। अपने पर झूठा आवरण डालकर वह लोगों को धोखा देने में लगा रहता है। ऊपर से तो वह तिलक-छापा लगा लेता है, लेकिन उसके विचार तो उसके कलंक बन रहे हैं, कोढ़ का रोग बन चुके हैं।
आदमी कोढ़ को जितना छिपाना चाहेगा, उतना ही उसे नुकसान होगा। मवाद तो एक-न-एक दिन बाहर आएगा ही। व्यक्ति अपने विचारों के प्रति सतर्क और सावचेत हो जाए तो उसका कर्म, व्यवहार, कामकाज बहुत पवित्रतम और श्रेष्ठतम हो जाए। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो काम करने से पहले ही उस काम के बारे में सोच लेते हैं, ऐसे लोग बुद्धिमान हैं। जो काम करते समय सोचते हैं, सतर्क रहते हैं, वे समझदार हैं। काम करने के बाद जो सोचे, पछताये, वह मूर्ख है।
टक्कर लगी और स्याही की दवात फूट गई। अब चिल्लाने या
सोच हो ऊंचा / ५२
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