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चेतना का रूपान्तरण
माटी ही फूल बनती है और गंदगी ही खाद बनकर सुगंध बन जाती है। जिस माटी को हम व्यर्थ और अर्थहीन समझते हैं, उस माटी में फूल खिलाने और उसे सुवासित बनाने की महान संभावनाएं हैं। जिसे हम गंदगी समझते हैं, वह अगर बीज को मिल जाए तो, उसी गंदगी से सुगंध पैदा हो सकती है। वस्तु के रूपान्तरण की कला आ जाए, मार्ग परिवर्तन करने की सूझ आ जाए तो इस धरती पर न तो कोई माटी है
और न ही कोई गंदगी है। हर दुर्गन्ध सुगन्ध की भूमिका है और हर माटी फूल, का प्रजनन-स्थल है।
जीवन न तो व्यर्थ होता है और न ही सार्थक। ऐसा नहीं कि जीवन का कोई अर्थ नहीं है; और कोई अर्थ है। जीवन कोई रेडीमेड कपड़े की दुकान नहीं है कि कपड़े खरीदने गए, पसंद किया और ले आए। जीवन के अर्थ तो खोजने पड़ते हैं। जीवन तो आकाश की तरह, कोरा कागज जैसा है।
जीवन के कोरे कागज पर हम जो चित्र चाहें चित्रित कर सकते हैं। इस पर यदि हम इन्द्र-धनुष बनाना चाहें, तो बना सकते हैं और इसी कागज पर कीचड़ उछालना चाहें, तो कीचड़ भी उछाला जा सकता है। किसी कागज पर, आकाश पर यदि इन्द्रधनुष बनाया जा रहा है तो
चेतना का रूपान्तरण / ४०
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