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________________ तक इतनी मेहनत क्यों करता है? इतना झूठ-सांच आखिर किसलिए? एक ओर करुणा तो दूसरी ओर क्रूरता, क्यों? हर सवाल का जवाब होगा जीवन के लिए, जीवन के सुख-साधनों के लिए। नित नये आविष्कार हैं तो जीवन के लिए, अध्यात्म और शास्त्र हैं तो जीवन को ऊँचा उठाने के लिए। धन-दौलत, परिवार, नौकर-चाकर, सब जीवन की परितृप्ति के लिए हैं। जीवन के उत्थान के लिए ही इतने विद्यालय-विश्वविद्यालय खुले हैं। जीवन की स्वस्थता के लिए ही इतने चिकित्सालय और चिकित्साविद् लगे हैं। चलचित्र से लेकर राजनीति तक और अखबारों से लेकर उपनिषदों तक के सारे क्षेत्र-परिक्षेत्र जीवन के धरातल पर ही फल-फूल रहे हैं। इसलिए जीवन धरती का पहला आराध्य और पहली आराधना है। जीवन के लिए जीवन का अर्थ है, स्वार्थ-परार्थ का नहीं। जीवन तो जीवन ही है फिर चाहे वह अपना हो या किसी और का। जीवन के प्रति श्रद्धा का साधारणीकरण हो जाये, तो स्वार्थ-परार्थ की अलगाववादी भेद-रेखाएं भर जायें। फिर सिर्फ अर्थ होगा, अर्थवत्ता होगी। आदर होगा, वह आदर ही उपासना होगी। जीवन का सम्मान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जिसका जीवन के प्रति सम्मान और आदर नहीं है, वह मानवता के घर में रहने वाला इकार-रहित शिव है। परमात्मा तो बहुत दूर की बात है, उसमें मानवीय प्रेम, करुणा, अहिंसा और भाईचारे का भी नामोनिशान नहीं होगा। वह वंचित है जीवन के रस से, जीवन के आनन्द से, जीवन की उपलब्धियों और मूल्यों से, जीवन के परिपूर्ण उत्सव से । आत्म-संत्रास के दौर से गुजरते विश्व को आज मात्र ईश्वर की उपासना और उसके पूजा-स्थलों पर माथा टेकते रहने की आवश्यकता नहीं है, उसके लिए प्राथमिक धर्म, हृदय में जीवन के प्रति सम्मान और आदर को प्रतिष्ठित करना है। जीवन चाहे मेरा हो या तुम्हारा, जीवन तो जीवन है। जीवन में ईश्वर का नूर है। जीवन का सम्मान स्वयं घट-घट में बसने वाले परमात्मा का ही अभिवादन है, ईश्वर-अल्लाह की इबादत है। धरती पर सैकड़ों-हजारों धर्म पैदा हुए। जहां देखो ईश्वर की मानव हो महावीर | ३१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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