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सम्मान करें जीवन का
जीवन शुभारम्भ है। जीवन ही अस्तित्व का व्यक्तित्व है। जीवन ही अस्तित्व की अभिव्यक्ति है। जीवन जगत की आत्मा है और जगत् जीवन का मन है। जगत् जीवन की ही प्रतिध्वनि है। जीवन के विस्तार का नाम जगत् है। जन्म जीवन का आरम्भिक मंगलाचरण है
और मृत्यु अस्तित्व की विराटता में प्राणों का विलय है। जीवन है तो सारे मूल्य हैं, जीवन के अभाव में मूल्य का कोई अर्थ नहीं होता।
जीवन सर्वोच्च मूल्य है। भला-बुरा, धरती पर जो कुछ भी किया जाता है सब जीवन के लिए ही है। जीवन को बनाने और बचाने के लिए है। औरों के साथ कोई कितना भी खिलवाड़ करे, पर अपने जीवन का सवाल आते ही हर आदमी सजग सतर्क हो जाता है।
व्यक्ति जीवन भर धन-दौलत बटोरता है। वह सारा धन उस समय धरा रह जाता है जब जीवन के बचने और न बचने का प्रश्न उपस्थित हो जाए। भूकम्प आने पर हर कोई अपने जीवन को बचाना चाहेगा। वह बिसर ही बैठेगा कि उसने इतनी सम्पदा अर्जित की है। कहते हैं न 'जान बची तो लाखों पाये'। प्राण है तो सब है, अन्यथा कुछ भी नहीं।
मनुष्य के जीवन में इतनी आपा-धापी क्यों है? वह सवेरे से शाम
सम्मान करें जीवन का / ३०
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