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अन्तर्दशा के कारण महावीर बने। इसलिए अपने को कभी जन्मजात धार्मिक या महान मत समझो, आदर्श महापुरुषों की जीवन-चर्या के बारे में सोचो, विचार करो और अपनाओ।
___ तीसरी बात - हम भी महान बन सकते हैं, ऐसा विचार अन्तरमन में रखो, उसके अनुरूप काम भी करो।
कभी यह मत सोचो कि हम महावीर नहीं हो सकते। हम निश्चित ही महावीर हो सकते हैं; राम, कृष्ण, बुद्ध हो सकते हैं। हममें
और कृष्ण में फर्क नहीं है। वे भी मां के गर्भ से आए और हमारा भी मूल वही है। फिर क्या बात थी जो उनमें भगवत्ता साकार हो गई। राम भी तो इंसान थे, उनके पत्नी थी, लेकिन वे भी नकली हिरण के पीछे दौड़ गए थे। फिर भी कोई महिमा, पुण्य ऐसा था कि वे भगवान के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। हम उन्हें याद करते हैं, उनकी पूजा करते हैं। अपने पिता तक को याद नहीं करते। वर्ष में एक-आध बार श्राद्ध पर औपचारिकताएं जरूर कर लेते हैं पर राम को, कृष्ण को याद करते हैं, नाम-सुमिरन करते हैं।
सीता ने लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन किया और इसका दुष्परिणाम भी उन्होंने भोगा, लेकिन हम उन्हें याद करते हैं। आर्द्र कुमार, जिनके जीवन पर शास्त्र तक रचे गए हैं, गृहस्थ से साधु और साधु से गृहस्थ बने और पुनः साधु बन गए; फिर भी हम उनका पुण्य स्मरण करते हैं। अपने जीवन के लिए उन्हें किरण मानते हैं, जरूर यह कोई विशेष बात है। यह उनकी अन्तर्दशा का ही पुण्य प्रताप है।
बीज सबके एक जैसे हैं, अन्तर सिर्फ पल्लवन का है। कोई बीज बीच में ही समाप्त हो जाता है, कोई बरगद बन जाता है। हम सभी जीवन के दुर्गम, दुविधा-भरे मार्ग से गुजर रहे हैं। बुद्ध भी ऐसे ही गुजरे थे। लोगों ने उन्हें कितनी ही गालियां दी, लेकिन वे अपनी राह चलते गए और आज हम उनकी पूजा करते हैं। उनके लिए गाली, गाली नहीं थी क्योंकि वे अमृत हो चुके थे। - आप पच्चीस सौ वर्ष पुराना इतिहास उठाकर देख लीजिये। तब भी लोगों ने महापुरुषों को नहीं बख्शा। आज के युग में भी यदि महावीर और बुद्ध होते, उनकी कम उठा-पटक ठोक-पीट नहीं होती।
मानव हो महावीर /१६
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