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रचता था।
हम लोगों ने परमात्माओं को प्रतिस्पर्धा की दौड़ में लगा दिया, किसे श्रेष्ठ घोषित करें। अब जब दो परमात्मा हों तो कोई फर्क थोड़े ही होगा। फर्क तो तब होगा, जब एक दीया जला हो और दूसरा बुझा हुआ हो। दोनों दीये जलते हों तो कोई फर्क नहीं होगा। देवताओं का जितना नुकसान उनके अनुयायियों ने किया, उतना किसी ने नहीं किया। परमात्मा को दौड़ की पंक्ति में खड़ा कर दिया।
महावीर श्रेष्ठ हैं, बुद्ध श्रेष्ठ हैं, निश्चित रूप से श्रेष्ठ हैं, लेकिन एक बात ध्यान में रखिये, जिस दिन आप स्वयं परमात्मा बन जाएंगे, बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाएंगे, उस दिन आप में और बुद्ध में कोई फर्क नहीं होगा। और एक दिन तो हर आदमी को परमात्मा होना है। कली है, फूल बनकर खिल जाए तो उसका निर्वाण तो हो गया। ऐसा नहीं है कि निर्वाण केवल मनुष्य को मिलेगा। जिस तत्व में जन्मे हो, उसी में पूर्णता को उपलब्ध कर जाओ, यह तुम्हारा निर्वाण होगा। अगर एक फूल पूरी तरह खिल गया तो समझो वह पूर्ण हो गया। मनुष्य अपने आप में मनुष्य जीवन की पराकाष्ठा को उपलब्ध कर गया, वह पूर्ण हो गया।
पूर्ण या परमात्मा होने पर किसी का एकाधिकार नहीं है। ऐसा नहीं है कि राम, कृष्ण, महावीर ही परमात्मा हो सकते हैं। हर व्यक्ति परमात्मा हो सकता है। केवल अन्तरस्थिति को पहचान कर ही आदमी परमात्मा हो सकता है। ऊपर-ऊपर ही घूमते रहे, मंदिर जाकर मूर्ति को पूज आए, भीतर परमात्मा का निवास नहीं हुआ, तो वह न तो परमात्मा हो सका और न ही सच्ची पूजा हो पाई। बाहर से सामायिक कर ली; मुंहपत्ती बांध ली, भभूत रमा ली, रामचदरिया ओढ़ ली, लेकिन अन्तर्दशा के अभाव में कोरी क्रिया, राख पर किया गया लेपन भर होगा।
____अन्तर्दशा बन गई तो ऊपरी तामझाम भले ही करो या न करो, जीवन-चर्या अपने आप समत्वपूर्ण हो जाएगी। सामायिक लेकर आप समत्व को हासिल करना चाहते हैं? लेकिन अन्तर्दशा घटित होने पर व्यक्ति चाहे मुंहपत्ती न बांधे, सामायिक न करे, तो भी उसे समत्व हासिल हो जाता है। ऐसा आदमी अंगारे हाथ में ले लेगा तो भी उसे
मानव हो महावीर / १७
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