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________________ ७४ निसीहि : मानसिक विरेचन की प्रक्रिया जो लोग मस्तिष्क में कूड़ा-कचरा लेकर जाते हैं विचारों का विकल्पों का, उनके भीतर परमात्मा के अमृत-स्रोत का विस्फोटन किस प्रकार से हो पायेगा । चट्टानों के हटाने के बाद स्रोत फूटता है। चट्टाने स्रोत की अवरोधक हैं। इसलिए सबसे पहले भगवान् महावीर ने बताया निसीहि-निसीहि । चट्टानों को हटा दो । गीता की भाषा में उसी के बाद स्थित प्रज्ञा का झरना कलकल निनाद करता हुआ दिखाई देगा। बाह्य विकल्पों एवं द्वन्द्वों का निषेध कर दो बिल्कुल। सारे कूड़े-कचरे को निकालकर बाहर फेंक दो। मन शुद्ध हो। विचार शुद्ध हो शरीर शुद्ध हो। आत्मा तो स्वतः शुद्धता की भूमिका पर आ जायेगी। निसीहि-क्रमिक यात्रा है। अशभ से शुभ की ओर और शुभ से शुद्धत्व की ओर यात्रा गतिमान हो। अशुभता और मलयुतता को तलाक दें। इसे थोड़ा समझे। कोई आदमी गन्दे हाथों वाला है। हाथ में कीचड़ लगा हुआ है या शौच-क्रिया के हाथ हैं, तो क्या वे परमात्मा या माता-पिता के चरणों को स्पर्श करने योग्य हैं ? नहीं है। उन गन्दे हाथों से कोई भी आदमी न तो भोजन करेगा, न मिष्टान्न खायेगा। स्वच्छता प्रथम आवश्यक है। इसी तरह कोई पात्र गन्दा है। उस गन्दे पात्र में दूध डालने से कोई फायदा नहीं है। पात्र झठा है तो झठे पात्र से कोई भी व्यक्ति पानी नहीं पीयेगा। बच्चे लोग स्लेट-पाटी लिखते हैं। अगर पाटी पहले से ही भरी हुई है, यानी लिखी हुई है तो उस पर और कुछ लिखने का कोई सार नहीं हैं, जब तक कि पहले का लिखा हुआ मिटा न दें। तो मन्दिर, उपाश्रय या गुरु-चरणों में जहाँ भी जाते हैं, सबसे पहले मन के इस कूड़े-दान को साफ करें। स्लेट-पाटी पर नये लेखन हेतु पहले के लिखे हुए को हटाना होगा। जमीन पर बैठने से पूर्व जमीन का परिष्कार करना होगा। परमात्मा के पवित्र चरणों का स्पर्श करना है, तो पहले गन्दे हाथों को धोना होगा। यदि पात्र में दूध डालना है तो पहले पात्र को साफ करना होगा। मस्तिष्क में जितना भी कूड़ाकचरा भरा है, वासना एवं विकार है, सबको निकाल दें। निसीहिरूप 'फिल्टर मशीन' में अपने विचारों के जल को निर्मल तथा स्वच्छ कर लें। 'सार-सार को गहि रहे थोथा देई उड़ाय'-यह कबीर की भाषा है। मैंने सुना है। दो मित्र पिकनिक करने के लिए कलकत्ता के इस बड़े बाजार से रवाना हुए। पहले मित्र ने कहा कि अरे यार ! बड़ी दुर्गन्ध आ रही है। दूसरे ने कहा कि 'दुर्गन्ध ? यह स्थान ही ऐसा है। न सफाई, न कोई बात। आगे चल रहे हैं ईडन गार्डन ।' वहाँ शुद्ध वातावरण है।' बात जच गयी। दोनों चल पडे । ईडनगार्डन पहुँचे तो भी दुर्गन्ध वैसी की वैसी। पहला मित्र चकित हुआ। फलों के बीच भी दुर्गन्ध ? मन उचटा । मजा सारा किरकिरा हो गया। चलो, बूटानिकल गार्डन जो कि भारत का सबसे बड़ा और अच्छा बगीचा है। पर, वहाँ पर भी वही गन्ध । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003961
Book TitleSamasya aur Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1986
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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