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प्रकाशन हो रहा है । ये प्रवचन वस्तुतः जिज्ञासु-श्रोताजनों द्वारा किये गए प्रश्नों के विस्तृत उत्तर हैं । समस्याओं के यथोचित मार्मिक समाधान हैं ।
इन प्रवचनों का विदुषी श्रीमती राजकुमारीजी बेगाणी ने पठन- संशोधन कर आशुलिपिक द्वारा रही त्रुटियों को दूर करने की कृपा की है । पुस्तक के संकलन तथा संयोजन में पू० मुनिवर श्री ललितप्रभसागर जी म० सा० का सहयोग एवं सहकार उल्लेखनीय है |
वयोवृद्ध साहित्यकार विद्वद्वर्य श्री भँवरलालजी साहब नाहटा ने शुद्ध मुद्रणशोधन किया है । वस्तुतः सबके पारस्परिक सहयोग से ही पुस्तक मूर्तरूप पा सकी है । अन्त में, हम सब पूज्य महोपाध्याय श्री चन्द्रप्रभसागर जी महाराज साहब के प्रति अपनी वन्दनाज्ञापित करते हैं, जिनकी अमृत वाणी ने हम सबको लाभान्वित एवं कृतार्थ किया ।
जय जिनेन्द्र |
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आपका
प्रकाशचन्द दफ्तरी कृते, श्री जीतयशाश्री जैन प्रकाशन
कलकत्ता
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