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पूर्व कथन
परम पूज्य आचार्यप्रवर श्रीमज्जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब के शिष्य-रत्न परमादरणीय शासन-प्रभावक मुनिराज श्रीमहिमाप्रभसागरजी महाराज साहब, सिद्धांत-प्रभाकर विद्वद्वर्य मुनि श्री ललितप्रभसागरजी महाराज साहब एवं व्याख्यान-वाचस्पति महोपाध्याय श्री चन्द्रप्रभसागरजी महाराज साहब का सन् १९८५ का गत चातुर्मास कलकत्ता में अनुपम एवं अभूतपूर्व हुआ। प्रवचन, पूजा प्रभावना, तपश्चर्या, स्वधार्मिक वात्सल्य, मन्दिर-निर्माण, अनाथ-सेवा-साहित्य-प्रकाशन आदि का विशेष ठाठ लगा रहा।
कलकत्ता में पूजनीय प्रवचन-प्रभाकर, महोपाध्याय श्री चन्द्रप्रभसागरजी महाराज साहब का तात्त्विक विषयों पर प्रभावशाली प्रवचन होता था। उनके प्रवचनों ने कलकत्ता-संघ को अपरिमित प्रभावित किया। उनके प्रवचनों को सुनने के लिये भारी भीड़ एकत्रित होती थी। इसका मुख्य कारण यह था कि लोग उनके प्रवचनों से रसाभिभूत हो जाते थे। यद्यपि उन्होंने कलकत्ता से विहार कर दिया, किन्तु उनके प्रवचनों का प्रभाव एवं सिक्का अभी तक कलकत्तावासियों पर जमा हुआ है, जो कभी नहीं मिट सकता। वास्तव में, पूज्य मुनिश्री के प्रवचन सूक्ष्मता रोचकता और विद्वता के त्रिविध तत्त्वों से समन्वित होते थे। डा. प्रभाकर माचवे, डॉ. प्रभात शास्त्री, प्रो० कल्याणमलजी लोढ़ा, भंवरलालजी नाहटा, कविवर कन्हैयालालजी सेठिया जैसे मूर्धन्य विद्वानों ने कलकत्ता में मुनिश्री के प्रवचन-श्रवणकर उनकी प्रवचन-शैली की मुक्त-कण्ठ से प्रशंसा की।
पूज्य मुनिश्री के प्रवचन कलकत्ता में लगभग साढ़े पांच महीने तक लगातार हुए। उनके प्रवचन अधिकांशतः पी० २५ कलाकार स्ट्रीट स्थित श्री जैन भवन में हुए। लगभग ४०-४५ सार्वजनिक प्रवचन हुए, जो कलकत्ता के भिन्न-भिन्न स्थानों पर हुए थे। उनके कई प्रवचनों की वीडियो फिल्म तैयार की गई एवं पूरे चातुर्मास में हुए प्रत्येक प्रवचन की कैसेट भी तैयार की गई।
पूज्य मुनिश्री के प्रवचनामृत का लाभ प्रत्येक सज्जन-जिज्ञासु प्राप्त कर सकें, इसी उद्देश्य से हम उनके प्रवचनों की एक पुस्तक प्रकाशित कर रहे हैं, जो कि कलकत्ता-चातुर्मास की मधुरतम स्मृति है । प्रस्तुत पुस्तक में प्रारम्भिक सात प्रवचनों का
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