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प्रश्न है : आज विज्ञान के युग में जब आवागमन के द्रुतगामी साधन उपलब्ध हैं और मनुष्य शब्द का गति से यात्रा करने की तैयारी कर रहा है, तब पदयात्राओं के महत्व का प्रतिपादन करना क्या युक्ति संगत है ?
आज का युग विज्ञान युग कहा जाता है । किन्तु युग कोई आज का युग नहीं है । हजारों साल पहले भी विज्ञान का युग था । जिन-जिन चीजों का आज आविष्कार हुआ है उन सभी वस्तुओं का, उन सभी आविष्कारों का मूल स्रोत बहुत पहले ही कहा जा चुका है, लिखा जा चुका है। विज्ञान ने ऐसा कोई भी आविष्कार नहीं किया जिसके बारे में संक्षिप्त अथवा विस्तृत रूप में प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख न हुआ हो । मूल आधार तो प्राचीन काल का ही है, बोज तो पहले का ही है आज का विज्ञान केवल उसे अंकुरित करता है । बीज बहुत पुराना है, अनादिय है ।
हम कोई भी उदाहरण ले सकते हैं, जैसे प्रश्नकर्त्ता के अनुसार आवागमन के द्रुतगामी साधना | किन्तु ये कोई आज के आविष्कार नहीं है । इनके बारे में हमने अनेक शास्त्रों में अनेक ग्रन्थों में कुछ न कुछ उदाहरण अवश्य पाये हैं जैसे विमान । रामायण में उल्लेख है कि हनुमान सात समुद्रों का उल्लंघन करके, सात समुद्रों को पार करके सीता तक पहुँचे अथवा जब लक्ष्मण मूर्छित हो गये तब हनुमान आकाश मार्ग से संजीवनी बूटी लेने के लिए पहुँच । हवा में उड़ने की कल्पना, मनुष्य हवा में भी उड़ सकता है, ऐसी अवधारणा हजारों साल पहले आ चुकी थी । हमने तो उन्हीं नियमों के आधार पर एक नये ढंग का विमान बना लिया । निश्चित रूप से आज विज्ञान ने हमें द्रुतगामी साधन उपलब्ध कराये हैं । अब मनुष्य शब्द की गति से यात्रा करने की तैयारी कर रहा है ।
हालांकि विमान यात्रा यह कोई निन्दनीय नहीं है । आकाश से चलना इसकी हम पूर्णरूपेण निन्दा नहीं कर सकते । ऐसे अनेक-अनेक उदाहरण है जिनसे ज्ञात होता है कि प्राचीन ऋषि महर्षि आकाश में चलते थे, आकाशचारी होते थे । वे गगन में विहार करते थे । अन्तर इतना ही है कि वे अपनी तपः शक्ति के आधार पर - स्वशक्ति के आधार पर ही आकाश में उड़ते थे और हम पराधीन होकर आकाश में उड़ते हैं । आकाश में वे भी उड़ते थे इसलिए आकाशचारी कहलाते थे । एतदर्थ हम यह तो कह ही नहीं सकते कि हवा में चलना, गगन में विहार करना गलत है । पानी की नौका में, जहाज में, केवल महावीर ही नहीं बल्कि उनके पश्चात् होने वाले ने भी नौका जहाज इत्यादि का प्रयोग किया था । ऐसे ढेर सारे उदाहरण है हमारे पास जिनमें मुनियों द्वारा नौका का उपयोग किया गया है। महावीर स्वामी स्वयं नौका में चढ़े थे फिर भी वे जिन्दगी भर पदयात्रायें ही करते रहे । नौका का यदि वे
आचार्यों और मुनियों
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