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________________ प्रश्न हैं : हमारे आचार व्यवहार हमेशा एक जैसे हों या देश और काल के अनुसार उसमें परिवर्तन कर सकते हैं ? यहूदियों की एक कथा है। एक फकीर था। उसकी एक बंजारे ने काफी सेवा की। जिस पर प्रसन्न होकर फकीर ने बंजारे को एक गधा भेंट किया। गधे को पाकर बंजारा बड़ा खुश हुआ ! गधा स्वामी-भक्त था। वह बंजारे की सेवा करता और बंजारा उसको। दोनों को एक दूसरे के प्रति बहुत प्रेम हो गया। एक दिन बंजारा माल-बेचने के लिए गधे पर दूसरे गाँव गया। दुर्भाग्य ऐसा कि गधा मार्ग में ही बीमार हो गया। उसके पेट में इतना तेज दर्द उठा कि वह वहीं पर मर गया। बंजारे को अत्यधिक शोक हुआ गधे की मृत्यु पर। उसके लिए गधा क्या मरा, कमाकर देनेवाला एक साझेदार मर गया। आखिर उसने गधे की कब्र बनायी और कब्र के पास बैठकर दुःख के दो आँसू ढलकाए। इतने में ही उधर से एक राही गुजरा। उसने सोचा कि अवश्य ही यहाँ कोई न कोई किसी महान फकीर का निधन हुआ है। श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए वह भी कब्र के पास आया और जेब से दो रुपये निकालकर चढ़ा दिए । बंजारा देखता ही रह गया। वह कुछ बोला नहीं, लेकिन मनोमन उसे हँसी अवश्य आ गई। वह राही अगले गांव में गया और लोगों से उस कब का जिक्र किया। ग्रामीण लोग आए। उन्होंने भी यथाशक्ति पैसे चढ़ाए। बंजारे के लिए तो यह भी एक तरह का व्यवसाय हो गया। गधा जब जिन्दा था तब उतना कमाकर नहीं देता था जितना कि मरने के बाद दे रहा था। खूब भीड़ लगती। जितने दर्शनार्थी आते कब्र का उतना ही ज्यादा विज्ञापन होता। और इस तरह गधे की कब्र किसी पहुंचे हुए फकीर की समाधि हो गयी। एक दिन वह फकीर भी उसी मार्ग से गुजरा, जिसने बंजारे को गधा दिया था। उसने उस कब्र के बारे में लोगों से चर्चा सुनी तो वह भी कब्र पर झुका । लेकिन जैसे ही उसने वहाँ अपने पुराने भक्त को बैठे देखा तो उससे पूछा कि यह कब्र किसकी है और तू यहाँ क्यों रो रहा है ? उस बंजारे ने कहा कि अब आपके सामने सत्य को छिपाकर रखने को मेरे पास ताकत नहीं है अतः सारी आपबीती सत्य कथा कह दी फकीर को। बड़ी हँसी आई फकीर को उसकी बात सुनकर। बंजारे ने पूछा कि आपको हँसी क्यों आई ? फकीर बोला कि मैं जहाँ रहता हूं वहाँ पर भी एक कब्र है जिसे लोग बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं। आज मैं तुम्हें बताता हूं कि वह कब्र इसी गधे की माँ की है। ___ इसी को कहा जाता है अन्धविश्वास । कुछ लोग अपनी आजीविका के लिए इन अन्ध विश्वासों को धर्म का मुकुट पहना देते हैं। और, इस तरह धर्म के नाम पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003961
Book TitleSamasya aur Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1986
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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