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________________ चमत्नार : एक भ्रमजाल मैंने पढ़ा है एडरशन को। प्रख्यात पाश्चात्य दार्शनिक है वह जिसने चमत्कार को भ्रमजाल कहा है। उसने लगभग कोई बाईस चीजें लिखी हैं, जिन्हें लोग चमत्कार मानते हैं। यदि उन बाईस चीजों में से कोई एक चीज भी आँखों के सामने सम्यक्तया करके दिखा दे। उसे वह एक एक लाख डालर देने को तैयार है और अपनी सारी दार्शनिक मान्यताओं तथा अपने दार्शनिक ग्रन्थों को वह असत्य मंजूर कर लेगा । शायद अभी तक उसे कोई परास्त नहीं कर पाया ।। महावीर ठहरे परम वैज्ञानिक । एडरशन महावीर के वक्तव्यों से प्रभावित हुआ होगा। महावीर सुनी सुनायी बातों पर विश्वास नहीं करते । वेद इसीलिये तो महावीर स्वामी के मस्तिष्क में स्थान प्राप्त नहीं कर पाये। वेद श्रुति है। श्रुति याने श्रवणित-सुना हुआ। सुनते तो बहुत हैं । लोगों को भी सुनने-सुनाने में बड़ा मजा आता है। किन्तु देखना दुर्लभ है। श्रोता और वक्ता दोनों नदी के मध्य है और द्रष्टा किनारे पर। सुनना उतना जरूरी नहीं है जितना देखना। कानों सुनी सो कच्ची, आँखों देखी सो सच्ची। इसीलिए महावीर ने श्रुति के स्थान पर दृष्टि पर ज्यादा जोर दिया था। आँखों से देखो यथार्थता को। सुनी-सुनायी बातें उतनी विश्वसनीय नहीं होती, जितनी आँखों देखी होती है। सुनी-सुनायी बातों में चमत्कार की बातें भी आ सकती हैं, किन्तु आँखों देखी चीजों में चमत्कार की संभावना भी नहीं होती। अहले दानिश आम हैं अहले-नजर कमयाब हैं द्रष्टा का ज्ञान सम्यक् होता है। शास्त्रों के ज्ञाता बहुत हैं। पण्डित भरे हैं दुनिया में, मगर वे विद्वान तथाकथित हैं। किन्तु शुद्ध आँख वाले, सम्यक् द्रष्टा विरले ही हैं। महावीर उन विरले लोगों में पहले हैं। तू कहता कागद की लिखी, मैं कहता आंखन की देखी-कबीर का यह वक्तव्य बहुत सही है। परम द्रष्टा ही ऐसी बात कह सकते हैं। इसीलिए महावीर ने राम तथा कृष्ण की बातों को नहीं कहा। बुद्ध ने महावीर की बातों का कथन नहीं किया। ईशा ने बुद्ध के वक्तव्यों को प्रगट नहीं किया। कारण हर व्यक्ति के अपने अपने अनुभव होते हैं। अनुभवों की अभिव्यक्ति में सब स्वतन्त्र हैं। राम की अपनी अनुभूति थी, महावीर को अपनी, बुद्ध की अपनी, शंकर और तिलक की अपनी। अनुभव में डूबा व्यक्ति कभी दूसरे के अनुभवों को नहीं कहेगा। हर द्रष्टा के अपने दृष्टिकोण होते हैं। उसके लिए दूसरों की बातें सुनी सुनायी बातें हैं । स्वानुभूत बातें नहीं हैं। महावीर को जो जचा, वह उन्होंने कहा । महावीर विज्ञान के प्रणेता हैं। वे आँखों देखी पर विश्वास करते हैं और वही कहते हैं। इसीलिए महावीर की बातों को विज्ञान इनकार नहीं करता। विज्ञान चमत्कार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003961
Book TitleSamasya aur Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1986
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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