SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर समाधान के वातायन में आहूत करना । उन्होंने तप को अग्नि कहा । जीवात्मा को अग्नि कुण्ड कहा । मन-वचन काया की प्रवृत्ति को कड़छी कहा और कर्म के काष्ठ को आहूत करने का निर्देश दिया । उन्होंने अपने ढंग से यज्ञ की परिभाषा और प्रक्रिया बतायी और वह यज्ञ कर्म उनका संयम से युक्त था । महावीर की भाषा है - तवो जोई जीवो जोईठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंगं । कम्म एहा संजम जोग सन्ति, होमं हुणामी इसिणं पसत्थं ॥ ऐसा यज्ञ ही शान्तिदायक और ईश्वरत्व की उपलब्धि कराने में सहायक हो सकता है । महावीर की इस बात का गीता और अंगुत्तरनिकाय आदि में भी समर्थक सूत्र हैं । सामाजिक सन्दर्भ में भी महावीर ने समाधान दिये और वे काफी कीमती सिद्ध हुए । उन्होंने आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए परिग्रह को सीमित करने की प्रेरणा दी, अपरिग्रह के सिद्धान्त को खोजा, जिसके परिणामस्वरूप आगे जाकर साम्यवाद पैदा हुआ । सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए उन्होंने अहिंसा जैसे सिद्धान्तों को लागू किया । जिसका परिणाम मनुष्य को शान्ति और निर्भयता प्रदान करना है । मनुष्य को युद्ध से, जीवन-संघर्ष से मुक्ति दिलाने में महावीर स्वामी की बहुत बड़ी देन है, अनुपमेय । वैचारिक विषमता को दूर करने के लिए महावीर ने अनाग्रह और अनेकान्त जैसे सिद्धान्तों की खोज की, ताकि मनुष्य वैचारिक समन्वय स्थापित कर सके, हर सत्य को अपने दृष्टिकोण से देख सके । कारण, मनुष्य की वैचारिक आँखों पर जब तक एकपक्षीयता और आग्रहशीलता की पट्टी बन्धी रहेगी, तब तक उसे किसी भी वस्तुस्वरूप का अच्छी तरह से दर्शन नहीं हो सकता । सभी धर्मों के समन्वय के लिए, वैचारिक समन्वय की स्थापना के लिए उनका अनाग्रह और अनेकान्त बहुत बड़ी देन है । मानसिक विषमता को दूर करने के लिए उन्होंने अनाशक्ति जैसे सिद्धान्तों की पुष्टि की, जिसका पालन कर मनुष्य आनन्द और वीतरागता को उपलब्ध कर सकता है । Jain Education International १५ इस तरह महावीर ने उस युग की एक-एक समस्या को समाधान दिया और जहाँ तक सम्भव हो सका, उन्होंने सभी धर्मों में समन्वय की स्थापना की । इसीलिए महावीर दुनिया के सबसे बड़े सर्वधर्मसमन्वयाचार्य हुए । उन्होंने जो समस्याओं का समाधान खोजा, वह न केवल उनके समय में सार्थक था, अपितु आज भी उसी रूप में सार्थक हो सकता है । युग में कोई बहुत बड़ा अन्तर नहीं आया है । उनके समाधान में कोई अन्तर नहीं आया । उन्होंने जो समाधान खोजे, वे समय के बुलबुलों के साथ क्षणभंगुर होने वाले नहीं, अपितु शाश्वत हैं। हर स्थान और हर समय में वे उपयोगी हैं । यही समाधानों का नैतिक मूल्य है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003961
Book TitleSamasya aur Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1986
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy