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________________ १४ महावीर समाधान के वातायन में को एक खूटे में बांध दिया। अब साधक को कोई परेशानी नहीं हुई । एक दिन साधना करते-करते ही वह साधक मर गया। साधक का शिष्य उसकी गद्दी पर आसीन हुआ जब वह ध्यान करने बैठता तो उसे अपने गुरु की बात याद आ जाती कि मेरे गुरु जब भी ध्यान करने बैठते थे तो सबसे पहले उस बिल्ली को खूटे में बाँध देते थे। बिल्ली चाहे इधर हो चाहे उधर, लेकिन उसे खोज करके भी वे खूटे से बाँध देते थे। लगता है कि उन्होंने जो साधना की और साधना में जो सिद्धि प्राप्त की, उसमें बिल्ली को खटे से बाँधना जरूरी होगा । अतः उसने भी बिल्ली को खूटे से बांध दी, लेकिन बिल्ली एक दिन मर गयी तो चेले ने दूसरी बिल्ली मंगाई और उसे खूटे से बांध दिया। लोग उनसे आकर पूछते कि आप ध्यान करने बैठते हैं तो बिल्ली को क्यों बाँध देते हैं ? तो वह कहता है कि तुम नहीं समझते यह हमारी साधना की अपनी प्रक्रिया है। तुम जानकर क्या करोगे ? लोग सोचते कि अपने बाप का क्या जाता है, वह जाने, उसका काम। चिकने घड़े पर पानी टिके जो ? दस साल बाद वह भी बिल्ली मर गयी। दूसरी बिल्ली आ गयी। कालान्तर में वह चेला भी मर गया। तीसरा चेला आया गद्दी पर, गद्दीधर । उसने फिर बिल्ली मंगाई। इस भांति यह एक नयी रोति, एक नई परम्परा चल पड़ी। उसके जो दादागुरु -प्रगुरु थे वे बिल्ली को किस उद्देश्य से बांधते थे, इसकी ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। बस, एक परम्परा चल पड़ी, वह सदियों-सदियों तक चलती ही रहती है। मूल में क्या है, लोग इसे नहीं खोजते । महावीर स्वामी कहते हैं कि केवल रूढ़िवादिता पर ही थोड़ी चलना है। मूल तक पहुँचो कि बिल्ली आखिर क्यों बांधी गयी ? क्या अब भी जरूरत है उस बिल्ली को बांधने की ? मूल में रही भूल भयंकर शूल है। ___महावीर ने मनुष्य को रूढ़िवादिता से मुक्त किया। उन्होंने ब्राह्मणवाद और यज्ञ-कर्म के प्रति विरोध किया। लेकिन उनका विरोध बड़ा अहिंसक था, हिंसापूर्ण नहीं था। उसकी क्रान्ति शान्ति-भावना से भरी थी। उन्होंने केवल ब्राह्मणवाद और यज्ञ-कर्म का विरोध ही नहीं किया, अपितु सच्चा ब्राह्मण और सच्चा यज्ञ क्या है, इसकी भी अपनी परिभाषाएँ दीं। परिभाषाएँ मूल्यवान और नैतिक थीं। फलतः उसका प्रभाव अन्य दार्शनिक मनीषियों पर भी पड़ा। जैनों के उत्तराध्ययन सूत्र के सत्ताइसवें अध्याय में, और बौद्धों के धम्मपद के ब्राह्मण-वर्ग में और हिन्दुओं के महाभारत के शान्ति पर्व में सच्चा ब्राह्मण कौन होता है, इसकी बहुत विस्तार से चर्चा की गयी है। यज्ञ का भी महावीर भगवान् ने अपने-अपने ढंग से नया अर्थ प्रस्तुत किया। जो यज्ञ केवल बाह्य-पक्ष से जुड़ा था, महावीर ने उसे अध्यात्म से जोड़ा। महावीर स्वामी की मान्यता थी कि जो लोग निरीह मूक पशुओं की बलि देते हैं, वह वास्तव में यज्ञ नहीं, बल्कि हिंसा रूपी दानवी का नृत्य है । पुण्यकृत्य महापापकृत्य बन जाता है। सच्चा यज्ञ तो है अपने भीतर के पशुत्व को ज्ञानाग्नि और ध्यानाग्नि में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003961
Book TitleSamasya aur Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1986
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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