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________________ मोक्ष : आज भी सम्भव विज्ञान का काम ही यही है कि वह हर असम्भव को सम्भव बनाये। जो चीज नहीं हो सकती है, वह हो। बस, विज्ञान का काम इतना ही है। और, विज्ञान का अर्थ तथा उसकी परिभाषा भी यही है। जहाँ भी सत्य की सम्भावना है, कुछ होने की सम्भावना है, वहाँ-वहाँ विज्ञान पहुँचने का प्रयास करता है। हर कोने-कांतर में विज्ञान कार्य करता है। विज्ञान बुद्धि के प्रयोग की उपज है, प्रत्यक्ष प्रमाण है। सत्य तो शाश्वत है। विज्ञान उस पर आये आवरणों और पर्दो को हटाता है। अनावरण करता है। यों समझिये कि स्रोत पर से चट्टानों को हटाने का कार्य विज्ञान करता है। हाँ ! यह बात अलग है कि इसमें समय अल्प भी लग सकता है और ज्यादा भी। ___ जगदीशचन्द्र बसु ने खोज की कि वनस्पति में जीव है। इस तथ्य की सिद्धि के लिए उन्होंने एक सार्वजनिक सभा में वैज्ञानिक तथ्य दिखाये थे। एक आदमी ने कहा कि यदि वनस्पति में जीव है तब तो यह जहर खिलाने से मर जाना चाहिये । बसु ने कहा, निश्चित मरेगा। जहर दिया गया, पर वनस्पति को कुछ नहीं हुआ। लोग बसु की हँसी उड़ाने लगे। बसु ने जहर की बोटल तत्काल पी ली, पर आश्चर्य कि बसु के भी कुछ असर नहीं हुआ। आखिर बसु ने बताया, कि लोगों ने धोखा किया है। यह जहर नहीं है, कोरा पानी है। बड़ा साहस होता है, वैज्ञानिकों में। जो चीज वे कर सकते हैं, वह सार्वजनिक है। जो चीज नहीं हो सकती, उसको भी वे कर दिखाते हैं। बिजली, तारवेतार, टेलीविजन, राकेट-ये सब असम्भव से असम्भवतम कार्य समझिये, पर सब आज सम्भव हो गये हैं। इसलिए आज यह कहना कि अमुक चीज अमुमकिन है, एक तरह से मानवीय ऊर्जा, मानवीय पुरुषार्थ और प्रगतिशील विज्ञान का तिरस्कार है। इससे हमारी आत्म-शक्ति की प्रतिष्ठा भंग होती है। मोक्ष सघन ऊर्जा की यात्रा है। विज्ञान-प्रभावित धर्म और जन दोनों मोक्ष को आज भी होना मान सकते हैं। इसलिए मैं मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्न भी करता हूँ, प्रेरणा भी देता हूँ। मुझे विश्वास है कि मुझे मोक्ष मिलेगा। मेरी मृत्यु जो कि हृदय-गति रुकने से होगी, मोक्ष के फल अवश्य खिलाएगी। इसलिए मोक्ष-प्राप्ति के लिए बार-बार जोर देता हूँ और देना भी चाहिए। क्योंकि मोक्ष है और आत्मदष्टि उपलब्ध हो जाये तो मोक्ष मिलेगा भी। यह नहीं हो सकता कि बौद्ध कह दे कि केवल गौतम सिद्धार्थ ही निर्वाण को पा सकते हैं। वे ही अन्तिम निर्वाणी हुए हैं। जैन कह दें कि महावीर स्वामी या जम्बूस्वामी तक ही मोक्ष हुआ था। अथवा ईसाई कह दे कि ईसा मसीह ही परमात्मा के इकलौते पुत्र हैं, तो यह बात ज्यादा तथ्यपूर्ण नहीं लगेगी। कितनी हास्यभरी बात है यह कि आज मोक्ष नहीं हो सकता। अरे ! पहले बन्धन होता था और आज भी बन्धन होता है। पहले मोक्ष होता था, तो आज मोक्ष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003961
Book TitleSamasya aur Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1986
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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