________________
मैं देखता हूं कि वह कोई नशाखोर तो नहीं है। भांग, तम्बाकू, जर्दा या शराब ऐसी कोई भी वस्तु जिससे मस्तिष्क अनियंत्रित हो जाए, उसका सेवन तो नहीं करता। अगर करता है तब भी वह निर्दोष है क्योंकि वह अपने नियंत्रण में नहीं है। अनर्गलता, उसमें नहीं शराब से आ रही है। हां, अगर स्वस्थ मस्तिष्क से संपन्न व्यक्ति कोई भी बात कहता है, उसकी बात पर गौर किया जाना चाहिए और अगर कोई गौर नहीं करता है तो वह स्वयं नासमझ है।
अस्वस्थ व्यक्ति के द्वारा कही गई सारी बातें अस्वस्थ होती हैं और स्वस्थ व्यक्ति अस्वस्थ बातें कहता ही नहीं। साधु कभी लड़ाता नहीं है और असाधु लड़ाने के सिवा और कुछ करता नहीं। जो दूसरों को लड़ाए और टांग खींचे वह असाधु ।
मेरे प्रिय! ध्यान आपके लिए है, आप सबके लिए है, हम सबके लिए है। हमें ध्यान के द्वारा प्रयास, करना चाहिए कि हमारे संक्लेश का महासागर येन-केन-प्रकारेण शान्त हो जाए, ठंडा हो जाए। हम अपने भीतर अच्छे संस्कार
और अच्छी आदतें डालें। हमारे भीतर जो बुरे विचार, पाप, दुष्कर्म और कुसंस्कार हैं, उन्हें भूलने का प्रयास करें और अच्छी बातों को लाएं, अच्छी बातें ग्रहण करने की कोशिश करें। अच्छा साहित्य पढ़ें, हमारी दुष्प्रवृत्तियाँ खुद ही सुधरती चली जाएंगी। जहाँ दीप जलता है अंधकार स्वयमेव ही समाप्त हो जाता है। जलते हुए चिराग अंधेरे को नेस्तनाबूद कर देते हैं। इसलिए मैं यही निवेदन करता हूं आप ध्यान करते हैं तो अपने-आप में जी रहे हैं, स्वयं को संस्कारित कर रहे हैं। यह भूल जाइए कि ध्यान गुफाओं में बैठकर करने वाले संतों या योगियों के लिए है। नहीं, ध्यान आप सबके लिए है।
मैंने ध्यान की जो विधि दी है वह आम आदमी के लिए है। चेतना की शुद्धि, चेतना के संस्कार और चेतना के विकास और रूपान्तरण के लिए है। आप अधिक न कर सकें तब भी प्रतिदिन सुबह व संध्या पैंतालीस मिनट ध्यान कीजिए। अगर आप लोग समूह में कर सकें तो बहुत अच्छा है। ध्यान अकेले में भी किया जा सकता है लेकिन समूह में ध्यान करने के लिए मैं इसलिए अनुरोध करूंगा क्योंकि समूह में करने से दो फायदे हैं - एक तो यह कि इतने सारे लोग मिलकर जब ध्यान करते हैं तो सभी की ऊर्जा मिलकर सघन हो जाती है। एक के शरीर से उभरने वाला आभामंडल/आभा का वलय दूसरे के शरीर को प्रभावित करता है और हम सहज ही चार्ज हो जाते हैं। दूसरा यह कि अगर किसी व्यक्ति की ध्यान में रुचि न भी हो तो वह भी एक-दूसरे को देखकर प्रेरित हो जाता है
चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/७६
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org