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________________ बदल जाता है, पता ही नहीं चलता। एक दिन में कितने रूप हो जाते हैं, कुछ मालूम है? हर क्षण, हर समय तुम्हारे चेहरे बदलते रहते हैं। इतना बदलता हुआ व्यक्तित्व, इतने बदलते हुए रूप? सुबह जिसे बिल्कुल शान्त, शालीन, प्रसन्न देखा दोपहर में उसे क्रोध से तमतमाते हुए लड़ते-झगड़ते, एक-दूसरे की कांट-छांट करते हुए देखते हैं। पहचान ही नहीं पाते क्या यह वही व्यक्ति है? सांझ को वही व्यक्ति शराब की बोतल पीने के लिए मचल रहा है, इधर-उधर डोल रहा है, अपशब्द बोल रहा है, समझ ही नहीं पाते कि यही वह सुबह वाला सभ्य व्यक्ति है! सुवह जो व्यक्ति मंदिर में जाकर वीतरागता की प्रार्थना कर रहा था, निर्वासना होने की प्रार्थना कर रहा था, रात को वही व्यक्ति अपनी कामना-पूर्ति के लिए साधन ढूंढ रहा है। व्यक्ति के इतने रूप बदल रहे हैं कि पता ही नहीं चलता आदमी कब क्या हो जाए। जो समुद्र सुबह बिल्कुल शान्त दिखाई दे रहा था वही वक्त के बदलते ही ऐसे ज्वार से भर जाता है कि लहरें-ही-लहरें, तरंगें-ही-तरंगें उठती हैं, नहीं पहचान पाते कि क्या यह वही समुद्र है! व्यक्ति के इतने रूप क्यों बदल जाते हैं? चेहरा नहीं बदलता। आप गोरे हों या काले, आंख-नाक-कान सब कुछ वैसा-का-वैसा रहता है लेकिन तब भी बहुत कुछ बदल जाता है। कई मुखौटे उतर जाते हैं, कई चढ़ जाते हैं। एक पति जो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता है, उसके विना रह नहीं सकता वह भी अपनी पत्नी के बारे में यह भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि उसका अगला पल कैसा होगा। हंसता हुआ चेहरा कब क्रोध में तमतमा उठे, नहीं कहा जा सकता। व्यक्ति इतना बदलता है। आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या कारण है? हर व्यक्ति अच्छा सोचना, विचारना और करना चाहता है। फिर भी नहीं कर पाता। हमारे भीतर ऐसी कौन-सी चीजें छिपी पड़ी है कि हम चाहने पर भी वह नहीं कर पाते, हमारे शुभ संकल्प टूट जाते हैं। जव मनुष्य को खुजली सताती है वह खूब खुजाता है, मस्ती आती है फिर मवाद निकलता है। यह देख कर सोचता है, तकलीफ हुई, जलन हुई। आने वाले कल के लिए संकल्प लेता है अव नहीं खुजाएगा। लेकिन जैसे ही खुजली उठेगी वह सारे संकल्प भूल जाता है। आखिर वे कौन सी वृत्तियाँ हैं जिनके कारण हम चाहते हुए भी अपने संकल्पों के प्रति सुदृढ़ नहीं रह सकते । मेरे देखे तो हर मनुष्य में संवेग हैं और उन संवेगों के पीछे 'वह' बैठा है, जो कठपुतली को नचाता है, जैसा जी चाहे वैसा। संवेग और संकल्प दोनों चलें, सागर के पार/७६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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