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________________ एक चूड़ी अपने हाथ में पहनकर रखी। बाकी सारी चूड़ियाँ उतार कर रख दीं। राजन् ! आप ही बताइए कि एक अकेली चूड़ी कैसे खनकेगी?' कहते हैं तब सम्राट को यह बोध हो जाता है कि एक अकेली चूड़ी कैसे खनकेगी! जिसने अपने भीतर एकत्व के बोध को अर्जित कर लिया, वो व्यक्ति सहज, मुक्त और निर्लिप्त हो जाता है। शरीर को ढीला छोड़ना फिज़िकल रिलेक्सेशन है। दिमाग की कोशिकाओं को ढीला, तनावमुक्त करना मेंटल रिलेक्सेशन है, पर तन-मन के प्रभावों से उपरत होकर स्वयं को स्वयं के एकत्व-भाव में स्थित और स्थापित करना स्पीचुअल रिलेक्सेशन है। एकत्व-भाव में स्थित होना ही आध्यात्मिक मुक्ति है। __सहजता, सकारात्मकता, सचेतनता और निर्लिप्तता- जहाँ इन चार स्तम्भों को आदमी अपने जीवन के साथ जोड़े हुए रखता है, शांति और मुक्ति उसके अगल-बगल रहती है। ठीक वैसे ही जैसे गणपति के अगल-बगल में ऋद्धि-सिद्धि रहा करती है। साधक भी संसार में जीता है इसलिए यह विवेक बनाए रखें कि मैं जितनी सचेतनता से जीऊँ, उतना ही मैं संसार में रहकर भी संसार से निर्लिप्त रहूँ। निर्लिप्तता किसी भी साधक की साधना की आत्मा बनती है। जब तक लिप्त रहोगे, तब तक उधेड़बुन चलती रहेगी जबकि निर्लिप्त व्यक्ति अपना प्रत्येक कार्य बहुत संयमित नपा-तुला, सब कुछ बोधपूर्वक ही करता है। अपनी ओर से प्रेमपूर्वक इतना ही अनुरोध है। शिविर भले ही आज समाप्त हो रहा हो, पर आप इन बातों को अपनी प्रेक्टिकल लाइफ के साथ जीने की सजगता रखें। जैसे गर्भवती महिला अपने गर्भ को सुरक्षित सम्हालकर चलती है, ऐसे ही आप इन बातों को अपने में सम्हालकर संजोकर चलें। संबोधि अर्थात् अब मैं प्रत्येक कार्य को होशपूर्वक-बोधपूर्वक करूँगा। ध्यान के प्रयोग और ध्यान की सजगता- दोनों ही आपको गहराई देंगे, शांति देंगे, मुक्ति प्रदान करेंगे। अनुसरण कीजिए आनंददायी धर्म का ९५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003959
Book TitleShanti Pane ka Saral Rasta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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